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________________ ५८८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास और गुरु का नाम विजयसेन सूरि बताते हैं। इसका आधार इनकी रचना 'अध्यात्म बावनी' की निम्नांकित पंक्तियाँ हो सकती हैं--- मुनिराज कहइ मंगल करउ, सपरिवार श्रीकान्ह सुअ, बावन्न बरन बहु फल करहु, संघपति हीरानन्द तुअ । अबतक उनकी यही एक रचना उपलब्ध है जो यह प्रमाणित करती है कि वे जैन तीर्थों के प्रति भक्तिभाव रखने वाले मात्र उत्तम श्रावक ही नहीं, एक कवि थे। ___ अध्यात्म बावनी की रचना सं. १६६८ आषाढ शुक्ल ५ को हई और उसी वर्ष लाभपूर में मोजिग किसनदास साह वेनीदास के पुत्र के पठनार्थ लिखी गई। इसकी प्रति उपलब्ध है । इस काव्य में ५२ अक्षरों को लेकर ५२ पद्यों की रचना की गई है। सभी पद्य आध्यात्मिक भाव से ओतप्रोत हैं। संतकाव्य की भाँति मोहग्रस्त जीवको संबोधित करके कवि कहता है ऊकार सरुपुरुष इह अलष अगोचर, अंतरज्ञान विचारि पार पावइ नहि को नर । ध्यानमूल मनि जागि आणि अंतर ठहरावउ, आतम तत्त् अनप रूप तसु ततषिण पावउ । इम हीरानंद संघवी अमल अटल इहु ध्यान थिरि, सुह सुरति सहित मनमह धरउ युगति मूगति दायक पवर ।' अंत बावन अक्षर सार विविध वरनन करि भाष्या, चेतन जड़ संबंध समझि निजचितमइ राख्या। ज्ञान तणउ नरि पार सार मे अक्षर कहियइ, नव नव भांति बखाण सुतउ पंडितपइ लहियइ । यह रचना तो हीरानन्द संघवी की लगती है किन्तु जैसा 'पहले कहा गया कि उसकी अंतिम पंक्ति में आया 'मुनिराज कहइ' पद शंकास्पद है। किन्तु यहाँ मुनिराज कहइ शब्द का अर्थ मुनि ने उन्हे आशीर्वाद दिया है। इनकी एक रचना विक्रमरास को सं० १७०० से पूर्व लिखित श्री मो० द० देसाई ने बताया है । इसका कोई विवरण-उद्धरण नहीं दिया है। १. डा० हरीश शुक्ल -जैन गुर्जर कवियों की हिन्दी कविता प० १२२ २. डा० प्रेमसागर जैन --हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० १५४-१५६ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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