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हीरानन्द मुकीम
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किसी युग का नामकरण संभव हो । वस्तुतः श्री देसाई ने १७वीं ( वि०) शताब्दी का नाम 'हैरकयुग' रखने का प्रस्ताव उसी गुण आधार पर किया होगा जिस गुण के कारण आचार्य महावीर प्रसादः द्विवेदी के नाम पर हिन्दी साहित्य के इतिहास में सन् १९०० से १९२० तक की अवधि को द्विवेदी युग कहा गया है । आ० द्विवेदी जी ने जिस प्रकार साहित्य और साहित्यकारों का मार्ग-दर्शन किया उसी प्रकार अपने समय में संघ और समाज का नेतृत्व हीरविजयसूरि ने अवश्य किया था । इसलिए जैन साहित्य के इतिहास में उनका नाम युग पुरुष, युग प्रधान के रूप में हमेशा याद किया जायेगा । अकबर ने इसी जगद्गुरु की पदवी दी थी ।
हीरानन्द मुकीम -- आप जगत सेठ के पुत्र ओसवाल श्रावक थे । ' आप आगरा के सर्वश्रेष्ठ जौहरियों में थे । महाकवि बनारसीदास ने अर्द्ध कथानक में लिखा है कि आपका शाहजादा सलीम से घनिष्ठ. सम्बन्ध था और आपके पास अपरिमित सम्पत्ति थी --
साहिब साह सलीम को हीरानन्द मुकीम । ओसवाल कुल जौहरी वनिक वित्तको सीम || '
आगे बनारसीदास ने वहीं लिखा है कि इन्होंने सं० १६६१ चैत्र सुदी २ को प्रयागपुर से सम्मेद शिखर के लिए संघयात्रा निकाली थी । बनारसीदास के पिता खड्गसेन भी इस संघयात्रा में निमंत्रित होकर गये थे । इस यात्रा में कई लोग बीमार पड़े और कुछ मर भी गये थे । खड्गसेन भी बीमार होकर लौटे थे । इस यात्रा का विवरण देने वाला एक हस्तलिखित गुटका श्री अगरचन्द नाहटा को मिला था जिसका नाम है -- वीर विजय सम्मेत शिखर चैत्य परिपाटी' । इसके अनुसार खरतरगच्छीय श्रद्धालुओं का यह संघ आगरा से चला । शाह हीरानन्द का संघ इलाहाबाद से चलकर बनारस में इस संघ से मिला और दर्शन-पूजन के पश्चात् वापस लौटा 1 श्री नाहटा ने एक लेख : 'शाह हीरानन्द तीर्थयात्रा विवरण और सम्मेतशिखर चैत्य परिपाटी र नाम से लिखा था। डॉ० हरीश शुक्ल इनके पिता का नाम कान्ह
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१. नाथूराम प्रेमी - अर्द्धकथानक पृ० २५
२. श्री अगरचन्द नाहटा - अनेकान्त वर्ष १४, किरण १० पृ० ३००-३०१.
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