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________________ ५८१ हीरकलश ५८१ यथा-- पूरवे श्री सिद्धसेन गुरु, विक्रम गुण संबंध, कीधी सिंघासणकथा वत्रीसे परबंध । इसके पश्चात् धारा नगरी के नृपति भोज से कथा प्रारंभ की गई है-- आराहि श्री ऋषभ प्रभु युगला धर्म निवार, कथा कहि सूविक्रमतणी जसु साकउ विस्तार ।। रचनाकाल--वसुधा तिलउ तस सीस बोलइ संघनइ आग्रह करी, देसइ सवालष मेडेह नयरा सदाजय आणंद भरी । संवत सोले सै छत्रीसइ बीजा भादो बदि कथा, तिह कहियसिंहासणबत्रीसी हीरकलश सुणी यथा । जीभदांत संवाद-(गाथा ४१) सं० १६४३, बीकानेर । रचनाकाल-सोल त्रयालइ मगसिरि, बीकानेर मझारि; हीरकलश रसणदसण, जोडिकरि जसुकारि । ज्योतिष सार (जोइस हीर) का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है सद्गुरु सानिधि सरसती, समरी सुवचन सार; जोइसना दूहा कहिस, बालबोध हितकार । तिथिवार नक्षत्र ग्रह राशि महूरत योग, ओ साते इति ज्योतिषे कहि संखेपे भोग । सहज भुवनें क्रूर सवि, भाई आपे हाण, हीरकहे सोमासवे, आया करे कल्याण । आपने विविध विषयों पर संस्कृत, प्राकृत और मरुगुर्जर हिन्दी में अनेक रचनायें करके अपना बहुमुखी पांडित्य प्रकाशित किया है; यद्यपि उद्धरणों के आधार पर काव्यत्व को प्रमाणित करना कठिन है किन्तु आपकी रचनाओं की संख्या आपको महाकवि प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त हैं । आपकी रचनाओं के विवरण श्री अगरचन्द नाहटा और डा० प्रेमसागर जैन ने दिए हैं किन्तु उद्धरण प्रायः नहीं दिए हैं । श्री मो० द० देसाई ने उद्धरण अवश्य दिए हैं किन्तु वे प्रायः आदि, अंत, रचनाकाल और गुरुपरंपरा आदि से ही सम्बन्धित हैं। काव्य कला की दृष्टि से उद्धरण उन्होंने भी नहीं दिए, अतः आपके काव्यक्षमता की तलाश के लिए स्वतन्त्र प्रयास की अपेक्षा है । १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३३.४२ (द्वितीय संस्करण) अन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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