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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
चंद्रगुप्त १६ स्वप्न संज्झाय ( गाथा २० ) सं० १६२२ भाद्र शुक्ल ५, राजलदेसर । गर्भ में आने से पूर्व तीर्थङ्कर की माँ १६ स्वप्न देखती हैं, उन्हीं का इसमें वर्णन है ।
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रचनाकाल - संवत सोलह सइ बावीस, भाद्रव सुदी पंचमीय जगीस राजलदेसर संधाग्रहइ अह सिन्झाय हीर कवि कहइ ।
आराधना चौपई - इसमें २४ तीर्थंकरों की प्रार्थना है । डॉ० प्रेमसागर जैन इसका रचनाकाल सं० १६१३१ और श्री देसाई सं० १६२३ माह शु० १३ मु० नागौर बताते हैं, यथा-
संवत भवण नयण, रिति शिशि, जोणे निपुण हियै ओ किशी, माह सुकुल गुरु पुष्य संजोग, तेरस तिथि तेम रवि जोग ।
अंत खरतर गच्छ जिणचंद सूरीस, तासु राजि हर्ष प्रभु सीस, हीरकलस मुनि पास पसाइ, कहि आराधन अहिपुर मांहि ।
सम्यक्त्वकौमुदी रास - - ( ६९३ कड़ी) सं० १६२४ माह शुक्ल १५. बुधवार, सवालख । डा० प्रेमसागरजैन इसकी पद्य संख्या १०५० बताते हैं । इस रास में अनेक संतों के चरित्र चित्रित हैं । भाषा में लय और भक्तिभाव की विशेषता है । इसमें आद्यान्त चौपाई छन्द क प्रयोग किया गया है । नमूने के लिए कुछ पंक्तियाँ लीजिए
संवत सोलह सइ चउवीस, माही पूनम बुध सरीस, पुष्य नक्षत्रई लेह, देश सवालख नयरी नेह, धर्म तणउजिलां वायु नेह, तिहां कीइ चउपइ जेह । इति श्री समकित कौमदि चरीय,
मइ संषेपइ अ अहरिय, विस्तरि गुरुमुख वाणि, भइ गुणइ जे सुणइ अहो निशिघरि बइण तसुथाइ सवि बसि, रिद्धि वृद्धि कल्याणी ।
सिंहासन बत्रीसी सं० १६३६ आसो वदी २, सवालख मेड़ता । इसकी कुल छंद संख्या ३५०० है । इसमें दोहा, चौपाई छन्दों का प्रयोग किया गया है और विक्रमादित्य भोज का चरित्र वर्णित है । इस बीपी में भोज के दृष्टान्त से दान की महिमा बताई गई है । यह रचना सिद्धसेन की सिंघासण कथा पर आधारित है ।
५. डा० प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि पृ० १२२
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