________________
हीरकलश
पड़ती हैं। सं० १६१५ के पूर्व और सं० १६५७ के पश्चात् रची उनकी कोई रचना उपलब्ध नहीं है अतः यह रचना सं० १६१७ की होगी। कवि ने लुकामत के प्रचलन के विषय में लिखा है
संवत पनरह सइ आठोतरइ जिन प्रतिमा पूजा परहर, आगम अरथ अवर परिहरइ, इणपरि मिथ्यामति संग्रहै । लखमसीह तस मलियो सीस, वक्रमती नै बहुला रीस,
विउ मिली निषेधइ दान, विनय विवेक आण ध्यान ।' अंत में अपने गुरु का उल्लेख करते हुए लिखा है--
गुरु श्री देवतिलक उपझाव, हरख प्रभु तसु सीस कहवाइ
तिण सहगुरुनो आयस लही, हीरकलस अ चोपइ कही। मुनिपति चरित्र चौपाई (पद संख्या ७३३) सं० १६१८ माह वदि ७, रविवार, बीकानेर। इसमें ऋषि मुनिपति का चरित्र चित्रित किया गया है। रचना मुनिभक्ति से ओत प्रोत है । इसका आदि इस प्रकार है--
जिन चउबीसे पयनमी सरसती (समरी माय),
(वर्णवु) मुनिपति चरीय, सारद मात पसाय । रचनाकाल--संवतसोल अठरोत्तरे ओ मा०, माह वदि सातमि जाणि,
वार रवि हस्त नक्षत्र सिउ मा०, चउपइ बड़ी प्रमाण । अंत इति श्री मुनिपति रिषि चरीयइ ओ मा०, श्री बीकानयर मझारि,
रिसह जिणंद पसाउलइ से मा०, रचियउ चरित्र उदार ७३३।२
१८ नातरा (रिश्ता) सम्बंधी संज्झाय ५२ कड़ी सं० १६१६ श्रावण शुक्ल नवरंगदेसर । जैन कथा साहित्य में जिन १४ नातराभों (रिश्तों) का उल्लेख किया है, उन्हीं का इसमें वर्णन है। आदि वीर जिणेसर पय नमीय, शारदा हियइ घरेवि,
जे कवियण आगे हूया तेह नमउ करखेवि । रचनाकाल - संवत सोलहसइ सोलोत्तर सुकुल सांवण जाण अ,
श्री जिनचंद्र सूरीसर पसायइ हरिकलस बखाण मे। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३३-४२ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग १ पृ० २३४-४०, भाग ३ पृ० ७२५-२९ और भाग २ पृ०
३३-४२ (द्वितीय संस्करण) तथा भाग ३ पृ० १५१० (प्रथम संस्करण)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org