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________________ हीरकलश रचनाकाल -- श्री रत्नसागर सूरीस, कहे हर्षसागर तस सीस, संवत चन्द्र- निधान, अग्नि वसु करीय प्रधान । स्थान -- लाडुल नयरी उदार, जिहां वसे श्रावक सुविचार | धन-धन मन उल्हासि छ मुनिसिउं रहिया चउमासि, आसो सुदि आदित्यवार, अकादशी तिथि उदार, रचीउ धनदहरास, भणतां सवि पूजइ आस ।' श्री मो० द० देसाई ने हर्षसागर को रतिसागर का शिष्य बताया है जो रत्नसागर का अशुद्ध रूप प्रतीत होता है । रचनाकाल सं० १९३८ भी अशुद्ध प्रतीत होती है । यह भ्रम 'निधान' का अर्थ निधि (९) लगाने के कारण हुआ होगा जबकि चन्द्र निधान एक ही शब्द है और वह चन्द्रमा की १६ कलाओं का वाची है । देसाई ने कवि की हस्तलिखित प्रति जो सं० १६३८ की लिखित है, का उल्लेख किया है अतः यह निश्चित है यह रचना १७वीं शताब्दी की है और कवि २०वीं शताब्दी का कदापि नहीं हो सकता । सच तो यह है कि जैन गुर्जर कविओ के क्रमांक ६०५ और क्र० ७२५ वाले हर्षसागर एक ही व्यक्ति हैं और वे १७वीं शताब्दी के लेखक थे । ५७७ हीरकलश - कविवर हीरकलश खरतरगच्छीय हर्ष प्रभ के शिष्य थे । आप अधिकतर बीकानेर और नागौर में रहे । सं० १६२१ में आपने नागौर में ज्योतिषसार ( जोइस हीर) की रचना प्राकृत भाषा में की । मरुगुर्जर में भी जोइस हीर नामक ९०५ कड़ी का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ आपने सं० १६५७ में लिखा था । यह ग्रन्थ साराभाई नबाब, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित कराया जा चुका है । इनके सम्बन्ध में श्री अगरचन्द नाहटा का एक लेख शोध पत्रिका भाग ७ अंक ४ में छपा है जिसमें सं० १६१५ से लेकर सं० १६५७ के बीच लिखी इनकी प्राय: (५०) पचास रचनाओं का उल्लेख किया गया है । उनकी एक सूची यहाँ दी जा रही है -- कुमति विध्वंसन चौपइ सं० १६१७ करणपुरी, मुनिपति चौपइ सं० १६१८ बीकानेर, अठारहनाता चौपइ (५२ गाथा) सं० १६१६, नोरंगदेसर, सोलह स्वप्न संज्झाय सं० १६२२३ १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ३८५ और ७४२-४३ (प्रथम संस्करणं ) तथा भाग २ पृ० १७४ - १७५ (द्वितीय संस्करण ) ३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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