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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास निश्चित है। हर्षसागर का समय भी इसी के आसपास होगा, निश्चित समय ज्ञात नहीं है। आपने सं० १६२२ के लगभग 'नव तत्व नव ढाल' नामक १५३ कड़ी की एक रचना की है जिसका आदि इस प्रकार है मंगलकमला कंदु ढाल आदि जिणंद नमेवि ओ, नवतत्व कहुं संखेवि अ, जीव तणां दस प्राण अ, पंच इन्द्री पंच प्राण । त्रिणि वल मण, वच काच अ, सास नीसास संजाइ ओ, आऊरवा सिउ दस हुइ अ, प्राण विजोगिइ पुण मरिइ । अंत इय नवतत्त्व विचारता अधिकी ऊछी भाभ रे, बोली हुइ अजाण वइ ते खामडं संघ साखि रे । तपगछ मोह सिरि गुरु, श्रीविजयदानमुणिंद रे, हरष सागर मुनिवर कहइ, पभणतां आणंद रे।' राजकोट बड़े संघ के शास्त्र भण्डार में विद्या विशाल गणि लिखित इस रचना की एक प्रति संकलित है। साधारण कोटि की रचना है। साम्प्रदायिक सिद्धान्तों का विवेचन पद्यबद्ध ढंग से किया गया है। इसी समय एक अभ्य हर्ष सागर भी हो गये हैं जिनका विवरण आगे दिया जा रहा है। हर्षसागर II-पूर्णिमागच्छीय पद्मशेखर सूरि>जिनहर्ष सूरि> रत्नसागरसूरि के आप शिष्य थे। आपने सं० १६३८ आसो सुदी ११, रविवार को लाडोल में ४७१ कड़ी की वृहद् रचना 'धनदकुमार रास" पूर्ण की। इसका आदि देखिये सरसति सामिणि करो पसाय, प्रणमुं गच्छपति सहि गुरु राय, श्री रत्नसागर सूरि चरणे रहुँ, सरस कवित्त कथारस कहुं । गुरुपरम्परा-पूनिम पखि धुरंधर धीर, पय प्रणमे भूपति वीर, श्री पद्मशेखर सूरि राय, जेहनो जग मोटो जसबाय । इसके पश्चात् जिनहर्ष और रत्नसागर सूरि का उल्लेख किया गया है। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७३८ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १३५ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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