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हर्षसागर
आपकी गद्य रचना 'उपासक दशांग बालावबोध (सं० १६९२) की प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
प्रणम्य श्री महावीर जगदानंददायक, उपासकदशांग वक्ष्ये बालावबोधकं । श्री जिनचन्द्र शिष्येण हर्षवल्लभ वादिना,
सप्तभांगस्यटवार्थो विहितो ज्ञानहेतवे । इसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है--
दन्नंद चंद्राब्दे श्री राजनगरे कृता,
स्वच्छे खरतरेगच्छे हर्षवल्लभ वाचकैः ।। इस बलावबोध की मरुगुर्जर गद्य शैली का नमूना नहीं उपलब्ध हो सका।
हर्षविमल-तपागच्छीय आणंद विमल के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६१० से पूर्व ही 'बारव्रत संज्झाय' नामक काव्य की रचना की थी। इस लघुकृति की अन्तिम चार पंक्तियां नमूने के रूप में प्रस्तुत की जा रही हैं---
तपगच्छमंडण जाणीइ अ, मा० आणंद विमल सूरींद, तसू पाटइ गोयम समा ओ, मा विजयदान मुणिंद । श्री आणंद विमल तणुओ, मा० हर्षविमल गणीस,
सीस कहइ भणतां हुई अ, मा० नवनिधि तसु निसदीस ।' इसमें कुल ६५ कड़ियां हैं।
हर्षसागर I-आप तपागच्छीय प्रसिद्ध आचार्य विजयदान सूरि के शिष्य थे। विजयदान सूरि का समय सं० १५८७ से सं० १६३२ तक
१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ६०२, भाग ३ पृ० ८९२-९४ तथा
भाग ३ खण्ड २, पृ० १६०८-९(प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० ८-१०
(द्वितीय संस्करण) २. वही भाग १ पृ० १९० (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ४६ (द्वितीय
संस्करण)
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