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________________ हषवल्लभ ५७३ इस रास में सुरसेन की कथा द्वारा दया का माहात्म्य दर्शाया गया है। श्री हर्षराज ने सुरसेनरास के अलावा एक अन्य साम्प्रदायिक रचना 'लोंका पर गरबो' भी की है। यह रचना सं० १६१६ में हुई। इसका उद्धरण नहीं उपलब्ध हो सका है। हर्षलाभ-आप अंचलगच्छीय गजलाभ के शिष्य थे। आपने अंचलमत चर्चा नामक एक साम्प्रदायिक पोथी सं० १६१३ से पूर्व लिखी। यह अञ्चलमत के आचार्य गजलाभ पर आधारित रचना है। इसकी प्रति पर सं० १६१३ फाल्गुन शुक्ल ११ भौमवार लिखा है। पता नहीं यह प्रतिलिपिकाल है या रचना काल । रचना इस तिथि से कुछ पूर्व की हो सकती है।' हर्षवल्लभ-खरतरगच्छीय प्रसिद्ध आचार्य जिनचंद्र सूरि आपके गुरु थे। आपने मरुगुर्जर पद्य में मयणरेहा चौपइ (३७७ गाथा) सं० १६६२, महिमावती में लिखा तथा गद्य में 'उपासकदशांगबालावबोध" की रचना सं० १६९२ में की। मयणरेहा चौपइ (३७७ कड़ी सं० १६६२, महिमावती) का प्रारम्भ इस प्रकार हुभा है जिणवर चउवीसे नमुधुरि श्री आदि जिणंद, शांतिकरण जिनसोलमो, नमी से नेमिजिणंद । पुरुसादाणी परगडो, थंभण गोडी पास, फलवधिवीर जिणेसरु, पूरे मनचीआस । गुरु परम्परा के अन्तर्गत जिनदत्तसूरि, जिनकुशल सूरि, माणिक्यसूरि और जिनचन्द्र सूरि का सादर स्मरण किया गया है। इस रास में मयणरेहा सती के आदर्श शील का वर्णन किया गया है। कवि ने लिखा है सर ओपइ पाणी भर्यो वासे ओपइ फूल, नगर ओपइ मानवें, मानवसील अमूल । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १५९५-९६(प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ६६ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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