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________________ हर्ष रत्न ५७.१ इस प्रकार आपने खरतरगच्छीय आचार्य जिनचंद सूरि, जिनसिंह सूरि, समयसुन्दर और जिनसागर आदि के प्रति इन गीतों द्वारा अपनीभक्ति भावना की अभिव्यक्ति बड़े कुशल ढंग से की है । हर्षकुल -- ऐतिहासिक जैनकाव्य संग्रह में संकलित महोपाध्याय पुण्यसागर गुरुगीतम् छह छंदों की छोटी रचना राग सूहब में निबद्ध है । इसकी कुछ पंक्तियाँ भाषा के नमूने के रूप में प्रस्तुत हैंबिमलवदन जसु दीपतउ, जिमपूनमन उचंदजी, मधुर अमृत रस पीवता, थाइ परमाणंदजी । १ श्री जिनहंस सूरि सरइ सइ हथि दीखिय शीस जी, हरषी हरषकुल इम भणइ गुरु प्रतपउ कोडि वरीस जी । पुण्यसागर जिनहंस सूरि के शिष्य थे और उन्होंने सं० १६०४ में 'सुबाहु संधि' नामक रचना की थी अर्थात् पुण्यसागर १७वीं शताब्दी के प्रथम चरण के विद्वान् आचार्य थे । अतः उनके शिष्य हर्षकुल भी इसी के आस-पास विद्यमान रहे होंगे। श्री मो० द० देसाई ने हर्ष - कलश को हर्षकुल बताया है । हर्षकलश हेमविमलसूरि के प्रशिष्य एवं कुलचरण के शिष्य थे और सं० १५५७ में बसुदेव चौपई लिखी थी । प्रस्तुत हर्षकुल ने इस गीत में स्वयं को जिनहंस का प्रशिष्य और पुण्यसागर का शिष्य बताया है अतः ये दोनों (हर्ष कलश और हर्षकुल) एक नहीं हो सकते। इनकी कोई अन्य रचना मेरे देखने में नहीं आई । अन्त हर्ष रत्न - तपागच्छीय राजविजयसूरि> हीररत्नसूरि > लब्धिरत्न-सूरि > सिद्धिरत्न के शिष्य थे । आपने सं० १६९६ विजयादशमी गुरुवार को १८३ कड़ी की रचना 'नेमिजिनरास' अथवा 'वसंतविलास' को पूर्ण किया जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नाति हैंसकल जिनमन माह धरुं, करुं सद्गुरुनई हुं प्रणाम रे, ऋषभाजित संभवाभिनंदन, सुमति पद्मप्रभ गुणधाम रे । नेमिजी जिन गुण गाइइ पाइइ परमानन्द हो । मजी वसंत विलास रचुं जिमहोइ हर्ष आणंद हो । नेमजी जिन · १. ऐतिहासिक काव्य संग्रह पृ० २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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