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________________ ५७० मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास नमो सूरि जिणचंद दादा सदा दीपतउ, दीप तउ दुरजण जण विशेष, रिद्धि नवनिद्धि सुखसिद्धि दायक सही, पादुका प्रह समय उठि देख । अन्त हर्षनन्दन कहइ चतुःविध श्रीसंघ, दिनदिन दौलति एम दीजइ, इसमें कुल ४ कड़ी हैं। गीत गेय और सरल भाषा में निबद्ध है। इसी संकलन में २७ वें क्रम पर 'श्री जिनसिंह सरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत ११ वाँ, १२ वां गीत भी आपका ही है। ११ वाँ गीत है गच्छपति पद प्राप्ति गीत । यह जिनसिंह सूरि के गच्छ पद प्राप्ति से सम्बन्धित सूचनायें देता है। १२ वाँ निर्वाण गीत ढाल निलंदरी में १२ कड़ी का है। अपने गुरु समयसुदर उपाध्याय की वंदना में भी वादी हर्षनन्दन ने कई गीत लिखे हैं जो श्री समयसुदर उपाध्यानां गीतम् शीर्षक के अन्तर्गत ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह के पृष्ठ १३७ पर संकलित हैं। उनमें से प्रथम गीत का प्रारम्भ देखिये साचा साचो रे सद्गुरु जनमिया रे रुपसी जीरानंद, नवयौवन भर संयम संग्रह्यौ जी सईहथ श्री जिनचंद । महोपाध्याय समय सुन्दर लाहौर में अपने पांडित्य और काव्य कौशल से अकबर को प्रसन्न करके वाचक पदवी प्राप्त किया था उसका उल्लेख निम्न पंक्तियों में है, यथा-- लाहाउर अकबर रंजियो रे आठलाख अरथ दिखाड़ वाचक पदवी पण पामी तिहां रे, परगड वंश पोरवाड़। यह सात कड़ी की रचना है । इसकी अन्तिम कड़ी इस प्रकार है वाल्हो लागे चतुर्विध संघने रे सकलचंद गणि सीस, वडवरवती वादी सदा रे, हर्ष नंदन सुजगोस । इसके अलावा इसी संग्रह में जिनसागर सरि अवदात गीत नाम से पाँच गीत हर्षनंदन कृत संकलित हैं। एक गीत की दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- नान्हा मोटा क्युं नहीं गुण अवगुण वंधाण, जिणसागर सूरि चिरजयउरे, हर्षनंदन गुण जाण ।' १. ऐतिहासिक काव्यसंग्रह पृ० २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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