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हर्षनंदन
की।' आपकी दूसरी प्राप्त रचना सीमंधर स्तवन की प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
चंदलिया जिण जी सुकहे मोरी वंदणा रे जिणवर, जंगम सीमंधर सामी रे, चित थी तउ एक घड़ी नवि वीसरे रे, मुझ राति दिवसि जासु नाम रे । चंदलिया विहरमाण जिण वीसमउ रे, श्री देवरिधि इण नामि तूजप जप जिणवरु अ,
हरषकुशल गणि वीनवइ तूहि ज देव प्रमाण । इसके अन्त में तर्ज के लिए कवि ने बताया है
२०मा देवद्धि जिन स्तव । कुमर भलई आवीयउ अ ढाल ।
अंत
हर्षनंदन -आप खरतरगच्छीय महोपाध्याय समयसुन्दर के शिष्य सकलचन्द के शिष्य थे। आप अपने समय के विशिष्ट विद्वान्, कवि और साहित्यकार थे। आप शास्त्रार्थ में परमनिष्णात् थे अतः 'वादी' उपाधि से विभूषित थे। आपने संस्कृत उत्तराध्ययन ऋषिमंडल आदि ग्रन्थों की बृहत्-टीकायें लिखी हैं और मध्यान्य व्याख्यान पद्धति आदि मौलिक ग्रन्थ भी रचे हैं। मरुगुर्जर में आपके अनेक स्तवन एवं गीतादि प्राप्त हैं जिनमें से कुछ 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' में संकलित-प्रकाशित हैं, आपके अनेक शिष्य विद्वान्
और साहित्यकार थे जैसे जयकीति और प्रशिष्य राजसोम, समय'निधान आदि ।
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह के २५ वें क्रमांक पर 'श्री जिनचंदसूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत ३१ वीं रचना धन्याश्री राग में निबद्ध हर्षनन्दन कृत एक गीत है जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं--
१. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७९ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १०३९ (प्रथम संस्करण) और भाग ३
पृ० २८० (द्वितीय संस्करण)
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