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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहासा
आराही श्री रिषभप्रभु जुगलाधर्मं निवारि, कथा कहों विक्रमतणी जास साकउ विस्तार | सावयो वरत्यो दानथीद्यन बड़ौ संसारि, वलि विशेष जिण सासणो बोल्या पंच प्रकार ।
प्रशस्ति श्री खरतर रे गुणहर गुरु गोयम समौ, नित उठि रे श्री जिनचंद्र सूरि पय नमी ।
इन पंक्तियों से स्पष्ट है कि कवि खरतरगच्छीय जिनचन्द्र का भक्त है किन्तु यह स्पष्ट नहीं कि उनका ही शिष्य है या किसी अन्य का । इसमें रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-
संवत सोलह सौ छत्तीस से बीस आसू वदि कथा, तिहि कहिय सिंघासन बत्रीसी कही हरि सुणी जथा ।"
हर्षकीर्ति -- आप राजस्थान के जैनसन्त और आध्यात्मिक कवि थे । आपने राजस्थान में अधिकतर विहार किया और वहाँ की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक जागृति में योगदान किया । आपने मरुगुर्जर में कई रचनायें की हैं जिनमें 'चतुर्गति बेलि' अत्यधिक लोकप्रिय रचना है । यह रचना सं० १६८३ में की गई । इसके अतिरिक्त आपने नेमिराजुल गीत, नेमिश्वर गीत, मोरडा, कर्महिण्डोलना, पंचगति वेलि आदि कई अन्य आध्यात्मिक एवं सरस रचनायें भी की हैं । इनके लिखे कुछ स्फुट पद भी प्राप्त हैं जो अभी तक अप्रकाशित हैं । आपने सं० १६८४ में ‘त्रेपनक्रिया रास' लिखा । 'छह लेश्या कवित्त' नामक इनकी अन्य प्राप्त रचना के सम्बन्ध में डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने लिखा है कि यह काव्यगुण सम्पन्न है और प्रस्तुत हर्षकीर्ति कवि बनारसीदास के समकालीन थे । राजस्थान के शास्त्र भंडारों में इनकी कृतियाँ अच्छी संख्या में मिलती हैं जिनसे इनकी लोकप्रियता का अनुमान होता है । इनकी गुरुपरंपरा और इनकी कृतियों का उद्धरण उपलब्ध नहीं हो पाया, फिर भी जो थोड़ा विवरण प्राप्त है, वह आमे प्रस्तुत किया जा रहा है ।
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१. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ५०३
२. यही ' राजस्थानी पद्य साहित्यकार' राजस्थान का जैन साहित्य पृ० २०९ ३. वही राजस्थान के जैन सन्त पृ० २०६
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