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हरिफूला
कवि विश्वासपूर्वक कहता है कि वैसे सिंहासन बत्तीसी आदि अनेक कथायें हैं, किन्तु इस विनोद कथा ऐसी सरस अन्य कोई कथा नहीं है, यथा
शुक बहुत्तरी कथा अछी, नीतिशास्त्र वली जाणि, कथा वली वेतालनी, भारथकथाबखांणि । सिंहासन बत्रीसी जोइ, अनेक अवर कथा वली होइ।
विनोद कथा सरखी को नहीं, जे सुणतां सुख उपजी सही। रचनाकाल -सुणयो कथा रची छी जेह, मास संवच्छर कहुं सवि तेह,
चन्द्र वेद रस अंक होय, अश्वन मास मनोहर जोय ।। तिथि पूनम अनि मुरुवार, नक्षत्र अश्विनी आव्यु सार ।
तिणि दिन रची चुपइ अह, सुणतां दुर्मति नाठी छेह ।' गुरुपरंपरान्तर्गत कवि ने सिद्धसूरि और लक्ष्मीरत्न के बीच क्षिमारत्न का भी उल्लेख किया है, यथा--
छिमारत्न ते पंडित जाणि, दिन प्रति हं करुं प्रणाम,
जयवंत विचरे तस सीस, वाचक लक्ष्मीरत्न जगीस । इसकी अन्तिम पंक्तियां इस प्रकार हैं
दूहा गाथा श्लोक चंपइ, शत ओगणीशनि भाजनि थइ । सुणतां श्रवणे संकट टली, भणतां नवनिधि आवी मली। विनोद च त्रीसी अह जे कथा, कहि कविता अछे जे यथा, मुनिवर हरजी कहि मनशुद्धि, भणतां सुणतां लहीइं बुद्धि ।
हरषजी-आपने सं० १६३९ से पूर्व 'पुण्यपापरास'३ नामक काव्य ग्रन्थ रचा। इस रचना का विवरण-उद्धरण प्राप्त नहीं है।
हरिफूला--आपकी एक रचना 'सिंहासन बत्तीसी' दिगम्बर जैन खंडेलवाल तेरह पंथी मंदिर द्यौसा से प्राप्त हुई है। यह रचना सं० १६३६ में की गई। इसका मंगला चरण देखिये-- १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १३९-१४४ (द्वितीय संस्करण) २. वही ३. वही भाग १ पृ० २४० (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १७५
(द्वितीय संस्करण)
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