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सौभाग्यहर्ष सूरि शिष्य
सोमविमलसूरि शिष्य- सोमविमलसूरि के इस अज्ञात-नाम शिष्य ने सं० १६३७ से पूर्व सम्भवतः सं० १६१८ ? माह शुक्ल ५ पाटण में अमरदत्त मित्रानन्द रास (४०२ कड़ी) की रचना चौपइ और दूहा में की है। सोमविमलसूरि का स्वर्गवास सं० १६३७ में हुआ था, अतः यह रचना उससे पूर्व की ही होगी। इसका प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
शांति जिनवर शांति, जिनवर पाय प्रणमेव पंचम चक्रवर्ति जांणीइ, सोलसमो कहि जिणेसर, सहि गुरुसेव निति करू, धरू रीदय सरसतिनिरंतर । कर जोड़ीनी वीनवू दीउ मुझ वचन विलास,
अमरदत्त मित्रानंदनो, सुण्यो भवियण रास । अन्त श्रावक व्रत पालि खंरा पांमि सरगनी वास,
शांतिनाथ नाचरित थकी, कीधो छि ए रास । रचनाकाल-संवत इंदुरस जाणीयइ, दिन वसुबे सार,
माघ सुकल पंचमी, भरतदीप जाणो उदार । गुरुपरंपरा-तपगछ नायक दीपतो, श्री सोमविमल सूरिंद,
रूपिजीतो रतिपति, मुख जासो पूनिमचंद ।'
सौभाग्यहर्ष सूरि शिष्य-सौभाग्यहर्ष सूरि के इस अज्ञात-नाम शिष्य ने श्रीगच्छ नायक पट्टावली संज्झाय अथवा सोमविमलसूरि गीत (५१ गाथा) सं० १६०२ ज्येष्ठ शुक्ल १३ को लिखा। सौभाग्यहर्ष सूरि के शिष्य सोमविमलसूरि ने भी सं० १६०२ में पट्टावली संज्झाय लिखा है। रचनाओं के नाम और रचनाकाल की एकता को देखते हुए यह शंका निराधार नहीं है कि संभवतः ये दोनों एक ही रचना हों। आवश्यकता थी कि दोनों का मूल पाठ मिलाया जाता किन्तु सोमविमलसरि कृत पावली संज्झाय से कोई उद्धरण भी उपलब्ध नहीं हो पाया, अतः प्रस्तुत रचना का प्राप्त उद्धरण देकर ही सन्तोष करना पड़ रहा है। इसका आदि इस प्रकार है
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ७१८-१९ (प्रथम संस्करण) एवं भाग
२ पृ० १११.११२ (द्वितीय संस्करण)
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