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सोमविमलसूरि अन्तिम -तां लगि श्री जिनसिंह गुरु अ, चिरजीवउ जयवंत,
चारित्र उदय वाचकवरु अ, तास सीस गुणवंत, बीर कलस गणि सुन्दरु ओ, पदकंज मधुकर तास,
सूरचंद गणि इम भणइ श्रीसंघ पूरइ आस ।' श्री जिनसिंहसूरि पर अनेक प्रशस्तिगीत समयसुन्दर, राजसमुद्र, हर्षनन्दन आदि ने लिखे हैं, जिनमें से कुछ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में प्रकाशित हैं। आपके जिनसिंह रास और जिनदत्त गीत में इन सूरियों से सम्बन्धित अनेक ऐतिहासिक महत्व की सूचनायें उपलब्ध हैं। इस प्रकार आपने साहित्यिक एवं साम्प्रदायिक दृष्टियों से उत्तम रचनायें संस्कृत और मरुगुर्जर भाषाओं में गद्य तथा पद्य में लिखकर साहित्य तथा सम्प्रदाय की उत्तम सेवा की है।
सोमविमलसूरि-आप तपागच्छीय हेमविमलसूरि के प्रशिष्य एवं सौभाग्यहर्ष सूरि के शिष्य थे। आप तपागच्छ के ५८वें पट्टधर थे। आपका जन्म खंभात निवासी समधर मंत्री के वंशधर रूपवंत की पत्नी अमरादे की कुक्षि से हुआ था। आपका जन्म नाम जसवंत था। सं० १५७४ वैशाख शुक्ल ३ को आपने हेमविमलसूरि से दीक्षा ली थी। सौभाग्यहर्षसूरि ने इन्हें सिरोही में पंडित और बीजापुर में उपाध्याय की पदवी प्रदान की। सं० १५९७ में आचार्य एवं सं० १६०५ में आपको खंभात में गच्छनायक का पद प्रदान किया गया। इसी अवसर पर इनके शिष्य आनन्द सोम ने 'सोमविमलसरि रास' लिखा जो ऐतिहासिक गुर्जर काव्य संचय में प्रकाशित है। उसी के भाधार पर यह विवरण दिया गया है। ___ आपने मरुगुर्जर में पर्याप्त साहित्य लिखा जिनमें से कुछ प्रमुख कृतियों का संक्षिप्त परिचय एवं उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है । आपका जन्म और कुछ कृतियों की रचना १६वीं शताब्दी में ही हो चुकी थी। इसलिए आपका संक्षिप्त विवरण १६वीं शताब्दी में ही दिया जा चुका है।
श्रेणिकरास, धम्मिलरास, चंपकष्ठिरास और छुल्ल ककुमाररास के उद्धरण-विवरण दिए जा चुके हैं। यहाँ केवल उन कृतियों के विवरण दिए जा रहे हैं जिन्हें प्रथम खण्ड में छोड़ दिया गया था। १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८९०-९१ (प्रथम संस्करण )
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