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________________ ५५८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गुणमाला चरित्र नामक महाकाव्य सं० १६८० सांगानेर में लिखा । पंचतीर्थी श्लेषालंकार चित्रकाव्य और शान्तिलहरी आदि काव्यकृतियों से इनकी विद्वत्ता एवं कवित्वशक्ति का परिचय मिलता है । जैनतत्वसारी सौपज्ञ टीका आपकी प्रकाशित संस्कृत रचना है । गद्य में आपने चौमासी व्याख्यान या चातुर्मासिक व्याख्यान बालावबोध सं० १६९४ में लिखा था । पदैकविंशति नामक संस्कृत रचना में प्रसंगानुसार मरु - गुर्जर में लिखे कई सुन्दर वर्णनात्मक स्थल मिलते हैं । महगुर्जर पद्य में आपने शृङ्गार रसमाला सं० १६५९ नागौर, जिन सिंहसूरि रास सं० १६६८, जिनदत्तसूरि गीत और वर्ष फलाफल संज्झाय आदि लिखे हैं ।' रचनाओं की सूची से स्पष्ट हो गया होगा कि आप संस्कृत और मरुगुर्जर के गद्य और पद्य में रचना करने में प्रवीण थे । आगे आपकी कुछ रचनाओं का संक्षिप्त परिचय एवं उद्धरण दिया जा रहा है । शृङ्गार रस माला ( ४१ गाथा) सं० १६५९ वैशाख शुक्ल ३, बुधवार को नागोर में लिखी गई । इसका रचनाकाल कवि ने इस प्रकार सूचित किया है नव सर रस ससि वछरइ, आखतीज बुधवार, नागपुरइ सिंगार रस माला गूंथी सार । हीरकलस आग्रहकरी, चतुरारंजण चाह, सूरचंद इणपरिकहइ, आणी अधिक उछाह । जिन सिंहसूर रास - ( ६५ कड़ी) सं० १६६८ से पूर्व रचित रचना का आदि श्री शांतिसर सेवयइ, सोलमजिनवरसार, चक्कीसरपंचमप्रगट सयलसंघ सुखकार । वाग्वाणी वर सरसती समरी सद्गुरु पाय, श्री बड़खरतरगच्छ धणी युगवर जिणचंदराय । तास सीस सोभागनिधि सुगुणसिरोमणिसार, श्री जिनसिंहसूरीस गुरु सेवक सुखदातार । तास गुरु गुण गाइसुं करिस्यु' कवित कल्लोल, अकमनां थइ सांभल उभगति भवियण रोल । १. श्री अगरचन्द नाहटा -- परंपरा पृ० ८१ २. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८९०-९१ ( प्रथम संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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