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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इम आस पूरइ पास गउडी समरिउ सानिधि करइ, शुभ वास खास निवास आपइ दुख दूरइ परिहरइ। पाठक मतिकीरति प्रसादइ, सीस सुमतिसिंधुर कहइ, जे करइ जात्रा भलइ भावइ मनवंछित फल ते लहइ।'
उपरोक्त उद्धृत अंश में कवि का नाम सुमतिसिंधुर दिया गया है। श्री अगरचन्द नाहटा भी यही नाम लिखते हैं किन्तु श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई इनका ताम सुमतिसिंधु या सुमतिसिंधुर दोनों लिखते हैं।
सुमतिहंस-आप खरतरगच्छ की आद्यपक्षीय शाखा के आचार्य 'जिनहर्ष सूरि के शिष्य थे। आपने गद्य और पद्य में पर्याप्त साहित्य लिखा है। गद्य में कल्पसूत्र बालावबोध और कालकाचार्य कथा की रचना की है। पद्य में मेघकुमार चौपाई सं० १६८६ पीपाड़, चौबीसी सं० १६९७ जयसेन लीलावती रास--विनोदरस सं० १६९१ जोधपुर, चंदनमलयागिरि चौपाई सं० १६११ ? बुरहानपुर, वैदरभी चौपइ सं० १७१३ जयतारण, रात्रिभोजन चौपइ सं० १७२३, जयतारण आदि की रचना आपने की है। श्री मो० द० देसाई ने इन्हें खरतरगच्छीय जिनचन्दसूरि > हर्षकुशल का शिष्य बताया है । मेघकुमार चौपइ को कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
संवत सोलइ सय छयासीयइ रे विजयदशमि सुप्रकाश, राजइ श्री जिनचन्द सूरि राजवी रे षरतरगच्छ सिणगार । वाणी सरस सुधारस उपदिसइ रे; इम गोयम अवतार, तास सीस सदा गणगणनिधि रे श्री हरष्यकुशल सुषकार । वादीगन पंचानन सारि सारे रुपइ मदनकुमार तास सीस लवलेस करी कहइ रे सुमतहंस मतिसार । वामानंदन पास पसाहुलइ ने श्री पीपाडि मझारि, सद्गुरु श्री जिनकुशल सूरीसनी रे सांनिधि संघ मझार,
परम प्रमोद उदय आणंद सुरे, नंदउ सहि परिवार । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५७४-७५ (प्रथम संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ८८ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० २७५ (द्वितीय संस्करण) और भाग १
पृ० ५४६ (प्रथम संस्करण)
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