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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास तुझ नामई हुइ निरमल ज्ञान, तुझ नामई वाधइ सविवान, तुझ मुख सोहइ पूनिम चंद, जाणे जीह अमीनउ कंद । तुम्ह गुण कहइता न लहुं पार, सेवकनइ देजे आधार, सारद नामिइ रचउ प्रबंध, सुणिज्यो अगडदत्त संबंध ।' काव्य की दृष्टि से रचना सामान्य कोटि की है और भाषा मरुगुर्जर है। सुमतिसागर-आप दिगम्बर परम्परा के भट्टारक अभयनन्दि के शिष्य थे और उन्हीं के साथ रहते थे। उनके स्वर्गवास के पश्चात् ये भट्टारक रत्नकीर्ति के साथ रहने लगे, अत: इन्होंने दोनों भट्टारकों के स्तवन में गीत लिखे हैं । इनके एक गीत के अनुसार भट्टारक अभयनन्दि सं० १६३० में भट्टारक गद्दी पर बैठे थे। वे आगम, काव्य, छन्दशास्त्र और पूराण आदि के मर्मज्ञ थे, यथा--- संवत सोलसा त्रिस संवच्छ र, वैशाख सूदी त्रीज सार जी, अभयनन्दि गोरु पाट थाप्या, रोहिणी नक्षत्र शनिवार जी.। आगम, काव्य, पुराण, सुलक्षण, तर्क न्याय गरु जाणे जी, छंद नाटक पिंगल सिद्धान्त, पृथक पृथक बखाणे जी ।२।। सुमतिसागर की प्रायः दस रचनाओं का विवरण प्राप्त है, उनके नाम हैं : साधरमी गीत, हरियाल बेलि १ और २, रत्न कीति गीति १ और २, अभयनन्दि गीत १ और २, गणधर वीनती, अझारा पार्श्वनाथ गीत और नेमिवंदना । नेमिवंदना की कुछ पंक्तियाँ नमूने के रूप में प्रस्तुत की जा रही हैं -- ऊजल पूनिम चन्द्र सम, जस राजीमती जगि होई, ऊजल सोहइ अबला, रूप रामा जोई। ऊजल मुखवर भामिनी, खाये मुख तम्बोल, ऊजल केवलन्यान जानू, जीव भव कल्लोल। ऊजल रूपानु भल्लु करि सूत्र राजुलधार, ऊजल दर्शन पालती, दुखनास जय सुखकार । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० १८१-८२ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० १०-११ (द्वितीय संस्करण) २. डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल--- राजस्थान के जैन संत पृ० १९१ ३. वही पृ० १९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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