________________
५५३
सुमतिमुनि
जिह्वादंत संवाद ११ छंदों की लघुकृति है। यह सरल भाषा में संवादशैली में रचित है, दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं
कठिन क बचन न बोलीयि रह्यां एकठा दोय रे,
पंचलोका मांहि इम भणी, जिह्वा करे यने होयरे।' वसंतविलास गीत में २२ छंद हैं जिनमें नेमिनाथ के विवाह का प्रसंग वर्णित है। यह एक सरस रचना है।
डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल ने सुमतिकीति का जो विवरण दिया है उसी के आधार पर डा० हरीश शुक्ल ने भी संक्षेप में इनका विवरण अपनी थीसिस में दे दिया है। वे भी इन्हें मूलसंघ बलात्कारगण सरस्वती गच्छ के ज्ञानभूषण का शिष्य बताते हैं अन्य कोई नवीन सूचना नहीं देते।
सुमतिमुनि-ये तपागच्छीय हर्षदत्त के शिष्य थे। इन्होंने सं० १६०१ कार्तिक शुक्ल ११ रविवार को अपनी रचना 'अगडदत्त रास' (१३७ कड़ी) पूर्ण की। आपने अपनी गुरुपरंपरा बताते हुए चन्द्रगच्छ के सोमविमलसूरि को नमन किया है और लिखा है -
अगडदत्त मुनि तणइ चरित्र, भणतां गणतां हुइ पवित्र, पंडित हर्षदत्त सीस इम कहइ, भणइ गणइ ते सब सुख लहइ । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है -
संवत सोल अंक काती मासी, सुमति भणइं मइ करिउ उल्हासी, शुक्ल इग्यारसि आदित्यवार,
अ भणतां हुइ हरष अपार । रचना का प्रारम्भ इस प्रकार हुआ है
आदि जिणेसर प्रणमी पाय, समरु सरसति सामिणि माय, करजोड़ी जइ मांगु मान, सेवकनइ देजे वरदान ।
१. डॉ० कस्तूरचंद कासलीवाल--- राजस्थान के जैन संत पृ० ११३-११७
और डा० हरीश शुक्ल-जैन गुर्जर कविओं की हिन्दी कविता को देन पृ० ९७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org