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________________ मरु- गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दोनों रचनाओं की भाषा सरल मरुगुर्जर या हिन्दी है । आणंद - आप गच्छनायक केशव के पट्टधर शिवजी गणि के शिष्य थे । आपने सं० १६९२ के आसपास अपने आचार्य की स्तुति में 'शिवजी आचार्य नो सलोको' नामक १४ कड़ी की एक रचना की है, जिसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं ३८ 'श्री चोबीसे निति ध्याऊं, श्री शिवजी गछनायक गाऊ देश सवे सिर सोरठ देश, नगर नगीनो नाम नरेश । संवत सोल सय अठ्यासी, केशव पाटि पाम्या उल्हासी । X X X मंत्रा जिम नवकार सारा कोकिल सलही जाइ त्युं रूप तेज परताप करि, प्रतपो श्री शिवजी गणि, आणंद कहत गणी गावंता, ऋद्धि वृद्धि कीरति गणी' । आनन्दकीति - आप जिनसिंह सूरि के शिष्य हेममंदिर के शिष्य थे । आपने १७वीं शताब्दी में बारहव्रतरास और नेमिस्तवन नामक दो रचनायें की हैं । श्री अगरचंद नाहटा ने इन रचनाओं का नामोल्लेख मात्र किया है, कोई विवरण- उद्धरण नहीं दिया है । मूलप्रति उपलब्ध न हो पाने के कारण मेरे लिए भी अन्य विवरण देना सम्भव नहीं हो पा रहा है । २ आनंदचंद - आप पार्श्वचन्द्र की परम्परा में समरचन्द्रसूरि के प्रशिष्य और पूर्णचन्द्र सूरि के शिष्य थे । आपने सं० १६६० में 'सत्तरभेदीपूजा' नामक स्तवन की रचना नगीना में किया जिसके आदि और अन्त की पंक्तियाँ निम्नवत् हैं अन्त आदि 'श्रीजिनचरणकमलनमी, समरो श्री गुरु भक्ति, जास पसाइ संपजै, वचन चतुरिमा युक्ति । सूर्याभविजयादिक श्री जिनपूजा कीध सत्तरभेदि अति विस्तरें, जीवित नो फल लीध ।' -: 'श्री समरचन्द सूरि शिष्य प्रवरवर उवझाय पूर्णचंद, तास पदाम्बुज सेवक मधुकर, पभणो आनंदचंद रे । १. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ खंड १ पृ० १०८२ २. श्री अगर चन्द नाहटा - परम्परा पृ० ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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