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________________ अभयसुन्दर - अमरचन्द्र ३७ सांतलपुर में 'कुलध्वजकुमाररास' नामक काव्य की रचना की । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं: 'जिन शारदा अनुपम नमी अने छंडी विकथा वात । श्री श्री कुलध्वज भूप नो पभणीस वर अवदात ।' रचना काल अन्तिम पंक्तियों में इस प्रकार बताया गया है— तस पदपंकज सेवा रसीउ, भमरतणी परिभासइ, अमरचन्द्र कवि इम आनंदी, कुलध्वज रास प्रकासइ, ८ ७ ६ १ संवत वसुमुनि रस शशी मधुमासि सित पक्ष रे । पूर्णिमासि तिथि रविवारइं तुम्हें जोइ लेयो दक्ष रे । ' इनकी दूसरी रचना 'सीताविरह' सं० १६७९ द्वितीय आषाढ़ सुदी १५ को पूर्ण हुई । इसके आदि अन्त की कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं आदि 'स्वस्ति श्री लंकापुरी, जिहां छे वर आराम, राम लिखे सीता प्रति, विरल लेष अभिराम । नामांकित वलि मुद्रिका आपे हनुमंत साथि, लेख सहित तुं आपजे, जनकसुता ने हाथि ।' अन्त 'संवत सोल उगण्यासीइ बीजे मास आसाढ़ रे, लेख लिख्यो मे पुनिम दिवसि ऋक्ष उत्तराषाढ़ रे । X X X अमरचन्द्र मुनि इणिपरि बोले, नर नारी सुणो सांचोरे । विरह तणां दुख टालवा, लेख अनोपम वांचोरे ।' यह रचना प्रथम कृति से अपेक्षाकृत छोटी है किन्तु सीता की मार्मिक विरह भावना से ओतप्रोत होने के कारण सरस एवं भावप्रवण है । प्रथम रचना कवि ने गुणविजयगणि के आग्रह पर लिखी थी । कवि ने लिखा है - श्री गुणविजय गणि कविजन केरो आग्रह अधिको जाणी रे, रास रच्यो मई सांतलपुर मां, मनमां आणंद आणी रे । * १. श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई – जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५०६५०८ (प्रथम संस्करण) २. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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