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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चतुर्विंशति तीर्थंकर लक्षणगीत, पद्मावतीगीत, गीत, नेमिश्वर नुं ज्ञानकल्याणकगीत, आदीश्वरनाथ नुं पंचकल्याणक गीत और बलभद्रगीत इनकी अन्य प्राप्त रचनायें हैं । सूखड़ी में तत्कालीन खाद्यपदार्थों और नाना प्रकार के मिष्ठान्नों का वर्णन मिलता है यथा ३६ जलेवी खाजला, पूरी पतासां फीणा खजूरी । दहीपरा फीणी मांहि साकर भरी । साकरवाला सुहाली तल पापड़ी साकली । पापडास्युं थीणुं कीय आलू जीवली । ' आपने प्रायः लघु कृतियों की रचना की है । काव्यत्व की दृष्टि से ये रचनायें ( चन्दागीत को छोड़कर) प्रायः सामान्य कोटि की हैं लेकिन जनता की मांग पर लिखी गई ये रचनायें काफी लोकप्रिय हुई थीं। इनका मुख्य लक्ष्य धर्म और चारित्र का प्रचार करना था । कवि ने इन लघुकृतियों द्वारा जैन धर्म और संघ की महती सेवा की है । इनके शिष्य दामोदर ने इनकी स्तुति में एक गीत लिखा है जिससे इनके परिवार एवं व्यक्तित्व का परिचय मिलता है । इनके मातापिता और गुरु से सम्बन्धित पंक्तियाँ पहले उद्धृत की गई हैं । यहाँ उनके व्यक्तित्व की गुरुता व्यक्त करने वाली कुछ पंक्तियाँ देखिए"वांदो वांदो सखीरी श्री अभयचन्द गोर वांदो । मूलसंघ मंडण दुरित निकंदन कुमुदचंद्र पनि वंदो । शास्त्रसिद्धान्त पूरण ए जाण, प्रतिबोधे भवियण अनेक । सकल कला करी विश्वने रंजे, भंजे वादि अनेक । " अभयसुन्दर - ( गद्यकार ) आप जिनचन्द्र सूरि के शिष्य समथराज उपाध्याय के शिष्य थे । आपने उत्तराध्ययन बालावबोध ( १३वाँ अध्ययन ) लिखा जिसकी प्रति सेठिया पुस्तकालय में संग्रहीत है । आपके शिष्य राजहंस भी अच्छे गद्यकार थे । अमरचन्द्र - आप तपागच्छीय सहजकुशल > सकलचन्द > शान्तिचन्द्र के शिष्य थे । आपने सं० १६७८ माघ सुदी १५ रविवार को १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल - राजस्थान के जैन संत व्यक्तित्व एवं कृतित्व (प्रथम संस्करण १९६७) पृ० १४८ -१५२ २. वही, पृ० १४८-१५२ ३. श्री अगरचन्द नाहटा - परम्परा पृ० ८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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