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सुमतिकीर्ति
५४९ हों पर वे सुन्दर विलास, सुन्दर शृगार, सुन्दर सतसई के रचयिता नहीं थे।
सुभद्र--आपकी एक रचना 'राजसिंह चौपाई' का उल्लेख श्री देसाई ने किया है जो सं० १६८३ ज्येष्ठ शुक्ल ११ को रची गई। इस रचना तथा रचनाकार का अन्य कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।'
सुमतिकल्लोल-आप खरतरगच्छीय आचार्य जिनचंद्रसूरि के शिष्य थे। आपने मृगापुत्र सन्धि सं० १६६१ महिमनगर, शुकराज चौपई १६६२ बीकानेर, रत्नसारकुमार रास चतुष्पदिका १६७९ मुलतान, बीकानेर ऋषभस्तवन, शंखेश्वर स्तवन और गीता आदि ग्रन्थ रचे हैं।
आपने हर्षनंदन के साथ मिलकर 'स्थानांग सूत्र' पर संस्कृत वृत्ति १७०५ में लिखा था। ___ कवि ने शुकराज चौपइ का समय 'दोय रस काय शशि' लिखकर सं० १६६२ बताया है। मृगा पुत्र संधिमी (१०९ गाथा) सं० १६६२ के आषाढ़ कृष्ण ११ को महिमानगर में पूर्ण हुई। श्री देसाई ने इन रचनाओं का कोई उद्धरण नहीं दिया है। 'ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह' में जिनचंद्र सूरि गीतानि' के अन्तर्गत छठां गीत सुमतिकल्लोल कृत है । इसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है--
श्रीवंत साह मल्हार सुमति कल्लोल सुखकार।
सुमतिकोति-सरस्वतीगच्छ के ज्ञानभूषणसूरि आपके प्रगुरु और प्रभाचंद गुरु थे । आपने सं० १६२५ में धर्म परीक्षा चौपइ, त्रैलोक्यसार
१. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १००९-१० (प्रथम संस्करण)
और भाग ३ पृ० २५३ (द्वितीय संस्करण) २. श्री अगरचन्द नाहटा-परम्परा पृ० ८२ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ८९१ (प्रथम संस्करण) और भाग ३
पृ० १७ (द्वितीय संस्करण)
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