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________________ सुन्दरदास इन्हीं पंक्तियों को श्री देसाई ने भी उद्धृत किया है देवी पूज्यौ सरसुती पूज्यो हरि के पाय, नमस्कार कर जोड़ि के कहै महाकविराय । नगर आगरो बसत है जमुनातट सुभथान आदि । स्पष्ट ही दोनों विद्वान् एक ही सुंदर शृंगार का विवरण दे रहे हैं जिसके लेखक सुंदर को एक बागड़ का जैन, दूसरा ग्वालियर का विप्र बताता है। अन्तर्साक्ष्य श्री देसाई के पक्ष में है और वही मान्य है। लगता है बिना पर्याप्त छानबीन के डा० प्रेमसागर जैन ने कामता प्रसाद जैन की साक्षी पर सुन्दर कवि और सन्त सुदरदास को मिलाजुला दिया है। डा० मोतीलाल मेनारिया संत सुंदरदास के पिता का नाम चोखा बताते हैं जब कि नागरी प्रचारणी सभा से प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहद् इतिहास में उनके पिता का नाम परमा दिया गया है। ___डा०प्रेमसागर जैन द्वारा उल्लिखित जैन कवि सुंदरदास के चार ग्रंथों में से तीन तो सन्त सुन्दरदास और महाकविराय सुन्दर के लगते हैं । एक रचना 'पाखण्ड-पंचासिका' का लेखक कोई जन कवि सुन्दरदास हो सकता है जो बागड प्रदेश का रहा हो । यह रचना जयपुर के बड़े मंदिर में गुटका नं० १२० में निबद्ध है। इसमें बाह्य कर्म और धर्म के नाम पर प्रचलित ढोंग पाखंड की निन्दा की गई है। डा० जैन ने इन्हें योगीन्दु और रामसिंह की परम्परा का कवि बताया है। जो हो, मैंने मूल रचना नहीं देखी, इसलिए इसे किसी जैन कवि सुन्दरदास की कृति मान लेता हूँ। 'धर्म सहेली' नामक एक रचना भी इन्हीं जैन कवि सुन्दरदास की हो सकती है जो दीवान बघीचंद के मन्दिर जयपुर के गुटका नं० ५१ में निबद्ध है। इसमें केवल ७ पद्य हैं। इस प्रकार सुन्दरदास नामक तीन कवियों का घालमेल डा० प्रेमसागर जैन के विवरण में हो गया लगता है। एक सन्त सुन्दरदास छोटे, दूसरे महाकविराय सुन्दर जो दरवारी कवि थे, तीसरे जैन कवि सुन्दरदास। किन्तु इस विषय पर जब तक पूर्ण छानबीन न हो जाय, अंतिम रूप से कुछ कह पाना कठिन है। दो का विवरण तो डा० जैन ने दिया ही है, संत सुन्दरदास और जैन कवि सुन्दरदास का, लेकिन वह भी अस्पष्ट है। श्री कामता प्रसाद जैन ने लिखा है कि सुन्दर विलास और सुन्दर सतसई की प्रतियाँ जसवंतनगर के दिगम्बर जैन मंदिर के एक गुटके में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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