SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 565
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४६. मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास विप्र ग्वालियर नगर कौ, वासी है कविराज, जासौं साहि मया करें सदा गरीब निवाज । इस रचना का नाम सुन्दर श्रृंगार बताया गया है सुन्दर कृत शृङ्गार है, सकलरसनिको सारु, नाऊं धर्मो या ग्रन्थ को यह सुन्दर श्रृंगार । यह शृंगार रस की रचना है इसलिए इसका रचयिता कोई जैन कवि शायद ही हो, अधिक सम्भावना है कि वह जैनेतर ही होगा । यही श्री देसाई ने लिखा भी है । इसका रचनाकाल सं० १६८८ बताया गया है, यथा संवत सोलह वरस बीते अठयासीति, कार्तिक सुदी षष्ठी गुरौ रच्यो ग्रन्थ करि प्रीति । पता नहीं डॉ० प्रेमसागर जैन ने इन्हें कैसे बागड़ निवासी लिख दिया है जबकि ग्रन्थ में स्वयं कवि अपने को ग्वालियर निवासी बताता है । डा० प्रेमसागर ने अपने कथन के पक्ष में कोई प्रमाण भी नहीं दिया है । वे ये सब बातें केवल कामता प्रसाद जैन के प्रमाण पर लिखते हैं । इस रचना में कवि ने सम्राट शाहजहां की प्रशंसा की है और लिखा है प्रथम दियो कविराय पद बहुरि महाकविराय अर्थात् पहले कविराय, बाद में महाकविराय पद शाहजहाँ ने इन्हें प्रदान किया और बहुत दान-सम्मान कियासाहिजहाँ तिन गुनि कौ दीने अगनित दान, तिन मैं सुन्दर सुकवि को कियो बहू सनमान । इससे स्पष्ट है कि सुन्दर कवि शाहजहाँ द्वारा सम्मानित सुन्दर श्रृंगार के लेखक विप्र थे और ग्वालियर के थे अतः जैन कवि सुन्दर की रचना सुन्दर श्रृंगार नहीं प्रमाणित होती है । सुन्दरसतसई भी इन्हीं की रचना हो सकती है । सुन्दर शृङ्गार की दो प्रतियों का उल्लेख नागरी प्रचारिणी पत्रिका में किया गया है । डा० प्रेमसागर ने एक तीसरी प्रति ( सं १८११ ) को मेवाड़ राजकीय पुस्तकालय में सुरक्षित बताया है और उससे दो पंक्तियाँ उद्धृत की हैं नगर आगरो बसत है जमुनातट सुभथान, तहाँ पातिसाही कर बैठो साहिजिहान । " १. डा० प्रेम सागर जैन-भक्ति काव्य और कवि पृ० १६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy