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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास उपलब्ध हैं। ये कृतियां सामान्यतया अच्छी हैं। इनमें से तीन तो स्तवन ही हैं। 'मंदोदरी रावण संवाद' संवाद शैली में प्रभावोत्पादक ढंग से लिखी गई विशिष्ट रचना है।
अन्त
सुधर्मरुचि-शुभवर्द्धन के आप शिष्य थे। आपको दो रचनाओं का विवरण प्राप्त हो सका है (१) आषाढ़भूतिमुनि रास और (२) गजसुकुमाल ऋषि रास । दोनों दो ऋषियों के आदर्श तपः पूत चरित्र पर आधारित रचनायें हैं । प्रथम रचना का प्रारम्भ देखिये
श्री शांति जिणेसर भवणदिणेसर पाय प्रणमी, बहुभगतिइं गायसउ रिषिराय । आषाढ़ मुनीश्वर जसो जुगह प्रधान, नाचत नाचतां पायउ केवलनाण । भुवनसुन्दर जयसुन्दरा रूपइ मोहनकंद रे, कोई केतलादान तिहा रहउ आषाढ़भूतमुणेंदुरे । श्री शुभवर्द्धन गुरु तम्ह तणा रे चलणे अविचल वासरे,
नामइ नवनिधि पामीइ, फलइ मन थी आसरे । 'गजसुकुमाल ऋषि रास' (१७ ढाल सं० १६६९ से पूर्व) इन दोनों रचनाओं में कवि ने रचनाकाल नहीं दिया है किन्तु प्रस्तुत कृति की प्रति पोस सुदी ३, सं० १६६९ की प्राप्त है इसलिये यह रचना कुछ उससे पूर्व की होगी । आदि
देससोरठ द्वारापुरी नवमो तिहां वासुदेवो रे, दसेंध दसारसउराजिउ वंधव थी वलदेवो । जीरे जीरे स्वामी समोसर्या हरषिइ गोपीनो नाथ ओ,
नेमिवंदण अलज्यो अलजउ यादव साथ । अंत श्री शुभवर्द्धन गुरुराय मइ प्रणमी तेहना पाय,
गायु गजसुकुमाल मुणिद, जस भणतां हुई आणद । श्री गजसुकुमाल जे गाई, ते सर्व वंछित फल पाई।
अनइ दुरिदुःकृत सवि जाइ, वली अविचल पद थाई।' आषाढ़ भूति रास में यह पंक्ति थोड़ी शंका उत्पन्न करती है कि रचना सुधर्मरुचि की है या उनके शिष्य की ? वह पंक्ति इस प्रकार है१. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ४०७ (प्रथम संस्करण)
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