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________________ -सुधनहर्ष महासेन वदना हिमकर हरि विक्रम नप संवत्सर, जेम मधु (चैत्र) नामि मास कही जइ, तेथी गुहमुह मास लहीजइ ।। तिथि सख्यात्रिक वर्गिजाणे, यमीजनक बलिवार बखाणे शिति पक्षि उडु यामक लहये, सिद्धिये गते माटइ कहये । गुरु परंपरा--हीरविजय सूरीसर केरो, धर्म विजय बुध शिष्य भलेरो, तस शिशु सुधनहर्ष इमि कहवइ, धर्मथकी सुखसम्पद लहवइ । धनहर्ष या सुधन हर्ष ने सं० १६८१ ? में तीर्थमाला नामक एक रचना ऊना में की जिसके प्रथम छंद में गुरु वंदना, द्वितीय में सरस्वती वंदना और तृतीय में ऊना या उन्नतपुर का उल्लेख संस्कृत 'भाषा छंदों में हुआ है, यथा-- नत्वा श्री विद्या गुरु रम्य श्री विजयसेन सूरींदान, श्री धर्मविजय बुधान गुरून गुरु निवधियास्माकान। रचनाकाल-इशां बक वसू वलि कहरे, दर्शन माहव नारि रे, से संवत्सर मइ कह्यो रे, पंडित तु मनिधारि रे । इसमें भी सम्राट अकबर और हीरविजयसूरि की भेंट का उल्लेख है, यथा श्री विजयदान सूरिंद पट्टोधर सूरि गुरु हीरविजयाभिधाना, नगर गंधार थी जेह तडाविआ साहि श्री अकबरदत्त माना। कवि ने अपने गुरु धर्म विजय की अभ्यर्थना के पश्चात् अन्त में लिखा है तास पद युग्म अंभोज मधुकर समो, तास शिशु विबुध धनहर्ष भाषइ, पंच अ श्री जिनाधीश संस्कृति थकी, प्रगट हुअं पुण्य रस सुधा चाखइ ।' कवि अपने को कहीं सुधनहर्ष, कही धन हर्ष लिखता है किन्तु इसके कारण कोई भ्रम नहीं होना चाहिये। ये दोनों नाम एक ही व्यक्ति के हैं। इनकी उपरोक्त चार रचनाओं के विवरण-उद्धरण १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ५०५ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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