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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास श्री जिन चौबीसइ प्रणमीनइ, वलि प्रणमी गुरु पाई रे, ब्रह्माणीनइ करीअ वीनती, मुझनइ तूसो माई रे । जंबूद्वीप विचार लिखेस्युं किंपि जाणवा कामिरे,
यथा प्रकास्यो वीर जिणिंद, पूछइ गौतम स्वामि रे । रचनाकाल-संवत सोल सत्योतरइ ओ, संक्रान्ति मकर रवि संचरइ ओ,
पोस बहुल रवि तिरसिओ, बलि दश बाजी मूलि वसिओ।' हीरविजय सूरि और अकबर की मुलाकात का उल्लेख इन पंक्तियों में किया गया है
श्री हुमाऊ सुत नृपोकब्बरो, तेणि जस कीति जिन श्रवणि निसुणी, दर्शनार्थ समाकारितो यो गुरु निज समीपे भवांभोधितरणी। धर्म उपदेश गुरुमुख थीं सांभली, पाप की वासना बहुत टारी । पर्व पजसणिं सकल निजदेस मां, तिणिनप जीव हिंसा निवारी। तेह गुरु हीरना शिष्य सोहाकरा, 'धर्म विजयाभिधा विबुधचंदा । तासु शिशु इम कहइ क्षेत्र सुविचार अ, भावि भणतां सुधन हर्षवन्दा ।
भणतलां सुणतला पुण्यवृन्दा-हीरजी।। देवकुरुक्षेत्र विचार स्तवन की प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं--
आगम सवि तुझ थी हुआ, वली ओ वेदपुराण, देखावइ सवि अर्थ तुं सहसकिरण जिम भाण । जिनवर विमल मुखांबुजि दीसइ ताहरो वास,
विष्णु ब्रह्म शंकर नमइ, सुरनर ताहरा दास । 'मंदोदरी रावण संवाद'--इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-- १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ. ५०४-५०५ और भाग ३ पृ० ९९.
(प्रथम संस्करण) २. वही
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