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________________ संघ या सिंहविजय ५३९. चित्तहरण वारु चैत्र मास, सेवक कहइ जनकी पूरइ आस । निवु वसंत वणराजी कंथ, अणइ मासि रचिउ अ ग्रन्थ ।' रचनाओं की संख्या और उनके आकार विस्तार से ये एक सक्षम कवि प्रतीत होते हैं। सिंहप्रमोद -आप तपागच्छीय सोमविमलसूरि की परंपरा में उदयचरण प्रमोद > कुशल प्रमोद > विवेक प्रमोद के शिष्य और लक्ष्मीप्रमोद के गुरुभाई थे। आपने सं० १६७२ (१६०२?) पौष शुक्ल द्वितीया रविवार को 'वेतालपचीसी' नामक कथाकाव्य की रचना की। इसका रचनाकाल शंकास्पद है। कवि ने रचनाकाल इस प्रकार बताया है-- संवत सोल विडोत्तरइ, पोष मास सुध बीज रवि दिनि । श्री मो० द० देसाई ने 'सोल वीडोत्तर' का अर्थ सं० १६०२ लगाया है किन्तु सोमविमलसरि की शिष्य परंपरा में चौथे स्थान पर आने वाले कवि की रचना सं० १६०२ की नहीं हो सकती अत: बहुत सम्भव है कि यह रचना सं० १६७२ की हो। वेतालपचीसी की कथायें पर्याप्त लोकप्रसिद्ध हैं । यह रचना उसी पर आधारित है। ___ संघ या सिंहविजय लोंका मत का त्याग कर मेघजी ऋषि ने सं० १६२८ में हीरविजयसूरि से दीक्षा ली थी। उनके साथ २८ अन्य लोगों ने भी दीक्षा ली थी। उनमें मुख्य शिष्य का नाम गुणविजय रखा गया था। इन्हीं गुणविजय के शिष्य सिंहविजय या संघ थे । एक संघविजय हीरविजय के शिष्य भी थे। इनका गृहस्थ नाम संघजी था, दीक्षित होने पर उनका नाम संघविजय पड़ा था। ये दोनों संघविजय एक ही व्यक्ति थे या दो यह कहना कठिन है। प्रस्तुत कवि का नाम सिंहविजय या सिंघविजय होना सम्भव है। ये संघविजय से भिन्न व्यक्ति प्रतीत होते हैं। आपने सं० १६६९ आसो सूदी ३ को श्री ऋषभ देवाधिदेव जिनराज स्तव (७१ कड़ी) लिखा है। इसका मंगलाचरण १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २७-३२ (द्वितीय संस्करण) २. वही भाग ३ पृ० ९६५ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ० १७४ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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