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________________ 'सिद्धिसूरि ५३७ यह रास पहले देवगुप्त सूरि शिष्य के नाम से दर्शाया गया था, बाद में इसका कर्त्ता सिद्धिसूरि को माना है।' सिद्धिसूरि ने अपनी अन्य दो रचनाओं-सिंहासन बत्तीसी और कुलध्वज कुमार रास में अपने को जयसागर का शिष्य बताया है। यह सम्भव है कि देवगुप्त सूरि शिष्य और सिद्धि सूरि एक ही व्यक्ति हों, किन्तु इसकी अधिक संभावना है कि मित्रानंदरास के कर्ता देवगुप्तसूरि शिष्य कोई अन्य व्यक्ति रहे हों। अस्तु, आगे सिद्धिसूरि की अन्य दो रचनाओं का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। सिंहासन बत्तीसी - (कथा अथवा रास अथवा चौपाई) सं० १६१६ बैशाख कृष्ण ३ रविवार को अहमदाबाद के निकट बारेज नामक स्थान में लिखी गई थी । इसका आदि देखिए विश्व जननी विश्वजननी पाय पणमेवी, सकल विश्व सख करणी, मुग्धजन बुद्धिदाता, कवियण मन आनंदनी जगत्र माहि तूं ही विख्याता, करजोड़ी तुम्ह वीनवं दीयो मुझ निरमल भत्ति, कहं कथा विक्रम तणी ते सुणजो एकचित्त ।' जे छे संस्कृत कथा प्रबंध, ते कह्यो भोज तणो सम्बंध, प्राप्त रस अधिको जाणीइ, तेह कारणि अह बखाणीइ। अंत गुज्जरदेश देश मांहि सार, श्री अहम्मदपुरवर सुविचारि, तास पास बारेज भलं, तेह बखांण करुं केतलं। तिहां श्री संघ तणे उपदेश, रची चौपै धरमविशेष, कवि करजोड़ी कहें ओणी परे, कहुं दिवस तेवटि न विस्तरे । रचनाकाल-संवत सोल सोलोतर जाणि, शाक चौद व्यासीओ बखाणि । वदि वैशाख त्रीज तिथिसार, मूल नक्षत्र निर्मल रविवार । १. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २०० ( प्रथम संस्करण ) और पृ० २०५-०७ वही तथा भाग ३ पृ० ६७३-७४ और ६७७-८० (प्रथम संस्करण) २. वही भाग २ पृ० २७-३२ (द्वितीय संस्करण) ३. वही भाग २ पृ० २७-३२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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