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________________ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सील सवइ सुख संपजइ, सील संपत्ति होइ, इह भवि परभवि सुखलहइ सील तणइ फल जोइ ।' कथा सुनने का फल बताते हुए इस प्रकार कवि ने लिखा है-- विरही तणा विरह दुख टलइ, मनमगती रस रमणी मिलइ । समझइ श्रोता चतुर सुजाण, मूरिख म लहइ भाग अजाण ।' साहिब- आप विजयगच्छ के आचार्य गुणसागर सूरि के प्रशिष्य एवं देवचन्द के शिष्य थे। आपने सं० १६७८ वदी ६ सोमवार को 'संग्रहणी विचार चौपई' नामक रचना की, जिसका आदि निम्नाथित है सकल जिणेसर पाइ नमुं ऋषभ अन्त वर्धमान, चौदह सइ बावन सवइ गणहर नमुं सुग्यान । संघयणि सूत्र थी उद्धरु करुं चउपही छंद, संतिनाथ सानिधि करो चंपावती आनंद । अंत श्री विजइगछ गुणसागरसूरिज्ञानकिरिपा करि छइ भरिपूरि, तास थिवर मुनिवर देवचंद, तास सिष्य साहिब आणंद । कला उदधि बान अन वित्त, संवत उत्तम अह पवित्त, कृष्ण पक्ष छठि नंदा तिथइ, सोमवार जोग रवि छतइ । संघयणि सूत्र विचार अ चरी गुरु परसादइ में उद्धरी। स्वापर समझ न काज अपार, रचा अह चाटसू मझार । भणइ सुणइ अनुभवइ विचारि, सदहइ ते नर समकित धार । साहिब कउ साहिब नर तेह, रत्नत्रय भाराधइ जेह । ३ आपकी भाषा सरल एवं प्रसाद गुण युक्त मरुगुर्जर है। काव्यात्र सामान्य कोटि का है। १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल-राजस्थान के जैन शास्त्रमण्डार की ग्रन्थ सूची भाग ५ पृ० ४८५ २. वही ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० ९४६ (प्रथम संस्करण) और भाग ३ पृ. २१२ (द्वितीय संस्करण ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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