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साधुकीर्ति उपाध्याय
तासु विनय गुणी अछर दयाकलश मुणीस, तासु सीस रंगइ कहइ साधुकीरति जगीस । नेमिराजर्षि चौपई सं० १६३३ भाद्र शुक्ल ५ नागौर में लिखी गई थी । गुणस्थानक विचार चौपई (४६ कड़ी) का आदि देखियेपणमिय जिणवर चउभिय भेय, समरि गोयम लब्धि समेय, चउद गुणठांणा तणइ विचार, संखेपइ हूं बोलिस सार । ' गुणठाणा नो ओह विचार, जे जाणइ ते तरइ संसार, वाचक साधुकीरति इम कहैं, ते निश्चइ सासय सुख लहइ । शत्रुञ्जय अथवा पुण्डरीक स्तवन (१६ कड़ी) आदि
अन्त
पय प्रणमी रे जिणवरना शुभ भाव लइ, पुण्डरगिरि रे, गाइसुगुरुसुपसाउलइ ।
अन्त
इम करीय पूजय थाजे गहि संघ पूजा आदरइ, साहम्मिवच्छल करइ भवियां भवसमुद्र लीला तरइं । प्रभाती ( ४ कड़ी) का आदि
आज ऋषभ घरि आवे, देखो माई ।
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अन्त
उत्तमदान अमृतरस ऊपम साधुकीर्ति गुण गावे । २
स्फुट रचनाओं में मौनएकादशी स्तोत्र १६ कड़ी १६२४ अलवर, विमलगिरि स्तवन १३ कड़ी, आदिनाथ स्तवन ११ कड़ी, सुमतिनाथ स्तवन १८ कड़ी, पुण्डरीक स्तवन १३ कड़ी, नेमि स्तवन, तिमरी पार्श्व स्तवन आदि भक्तिपरक रचनायें प्राप्त हैं । स्थूलिभद्र रास ३१ गाथा और नेमिगीत सरस लघुकाव्य कृतियाँ हैं । ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनचन्द्रसूरि गीतानि शीर्षक के अन्तर्गत कुल २१ गीत हैं जिनमें से तीसरा गीत साधुकीर्ति का रचा हुआ है इसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है
चिरनंदउ जिणचंद मुनीश्वर साधुकीर्ति इमबोलइ ।
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१. श्री हरीश पृ० ९२ ९६, और डॉ० प्रेमसागर जैन - हिन्दी जैन भक्तिकाव्य १२१
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२. जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० २१९, भाग ३ पृ० ६९९, भाग ३ खण्ड २ पृ० १५९५ ( प्रथम संस्करण ) भाग २ पृ० ४९-५८ ( द्वितीय संस्करण) तथा राजस्थान का जैन साहित्य पृ० १७४
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