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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास में खूब प्रचार रहा है। आषाढ़भूति प्रबन्ध सं० १६२४ दिल्ली, मौनएकादशी स्तव सं० १६३५ अलवर, नेमिराजर्षि चौपइ १६३६ नागौर, शीतलजिन स्तव १६३८ अमरसर, सवत्थवेलि, गुणस्थानविचार चौपइ, स्थूलिभद्ररास और कई स्तवन आदि आपकी अन्य प्राप्त रचनाओं में उल्लेखनीय हैं। गद्य रचनाओं में सप्तस्मरण बालावबोध के अलावा कर्मग्रंथ टब्बा, कायस्थिति बालावबोध १६२३ महिमनगर और दोषापहार बालाववोध आदि उपलब्ध हैं।'
१५वीं शताब्दी में भी एक अन्य साधुकीर्ति प्रसिद्ध लेखक हो गये हैं जिन्होंने मत्स्योदर कुमार रास और विक्रमचरित्ररास आदि लिखा था। प्रस्तुत साधुकीति खरतरगच्छीय मतिबर्धन> मेरुतिलक> दयाकलश>अमरमाणिक्य के शिष्य थे। इनकी कुछ रचनाओं का विवरण-उद्धरण प्रस्तुत किया जा रहा है ।
सत्तर भेदी पूजा (सं० १६१८ श्रावण शुक्ल ५, अणहिलपुर) का आदि
ज्योति सकल जग जागती है सरसति सुमरसुमंद,
सत्तर सुविधि पूजा तणी, पभणिसु परमाणंद । गाहा नवण विलेवण बथ जुग, गंधारोहण च पुष्परोहण्यं,
मालारुहण वन्नयं वन्नय, चुन्नं पडागाय आभरणे । अन्त अणहलपुर शान्ति शान्ति सब सुखदाई,
सो प्रभु नवनिधि सिधि बाजै। श्री जिनचंद सूरि गुरु षरतरपति, धरि मनवचन तसु राज । दयाकलस गुरु अमरिमाणिक्य गुरु, तास पसाइ सुविधिइ हुँ गाजै, कहै साधुकीरति करत जिन संस्तव,
सविलीला सवि सुख साजै ।२ 'आषाढ़ भूति प्रबन्ध'-१८७ कड़ी सं० १६२४, विजयदसमी [योगिनीपुर, दिल्ली। । अंत खरतरगछ वाचक थयउ मतिवर्धन नाम,
मेरुतिलक तसुसीसजे गुणगण अभिराम ।
१. श्री अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ७३ २. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४९-५० (द्वितीय संस्करण)
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