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________________ ५२८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का वृहद् इतिहास अन्त-तू स्वामीय दुखभयभंजण, तूंअ स्वामी शिवपुर मंडणु, संवत्सर सोल पंचोत्तरइ कार्तिक शुदि तेरसि रवि दिनइ ।' आपने दो स्तव भी लिखे हैं (१) २० विहरमान स्तव सं० १६१४ आसो सुदी १० काविण और (२) १४ गुणस्थानक गर्भित वीर स्तवन (२३ कड़ी) यह संज्झायमाला (लल्लूभाई) और मोटु संज्झायमाला संग्रह में प्रकाशित है। इन दोनों का आदि और अन्त नमूने के तौर पर प्रस्तुत हैं२० विहरमान स्तवन का आदि सरसति देवीय नमीय पाय, ऊलट अंगिआणीय, महीयलि महाविदेह खेत्रसार, जिनवर गुण जाणीय । अन्त संवत सोल चोदोत्तरइ अ आसो मासि उदार, शुदि दसमी विजयादिनिहि, श्री धर्ममूरति गणधार । १४ गुणस्थानक का आदि महावीर जिनरायना पय प्रणमी सहकार, चउदह गुण थानक तणउ कहीइं किंपि विचार । अन्त इय वीर जिणवर जगतहितकर सिंह लक्षण सुरतरु, भवभीउ भंजन भवियरंजन, दुरियगंजण सुहकरु । गुणठाण इणि परि सुपरिजाणउ, जिमल हउ सिवसुखमुदा, गणि सहजरत्न मुणिंद जंपइ, वीर जिण सेव उ सदा। सहजरत्न -आपकी एकमात्र गद्य रचना 'लोक नाल'(द्वात्रिंशिका) बालावबोध अथवा स्तवक का नामोल्लेख प्राप्त होता है, हो सकता है कि इससे पूर्व वणित सहजरत्न कवि और ये दोनों एक ही व्यक्ति हों। १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० २३-२४ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ० १९९-२०० तथा भाग ३ पृ० ६७२-७३ (प्रथम संस्करण) २. वही भाग २ पृ० २३-२४ (द्वितीय संस्करण) ३. वही भाग ३ पृ० २०० (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ खण्ड २ पृ० १६०५ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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