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महोपाध्याय सहजकीति
५२५: इसमें कवि ने कलावती, चौपई सुदर्शन चौपई, रायपसेणी चौपई सेत्रुञ्जमाहात्म्य आदि पूर्ववर्ती रचनाओं का उल्लेख किया है ।
सुदर्शन श्रेष्ठी रास ( ४३१ कड़ी सं० १६६१ बगड़ीपुर) आदि केवल कमलाकर सुर कोमल वचनविलास,
कवियण कमल दिवाकरु, पणमिय फलवधि पास। सुरनर किन्नर वर भमर सुणत चरणकंज जास,
सरस वचन कर सरसती, नमीयइ सोहगवास । इसमें भी जिनचन्द्रसूरि से हेमनन्दन तक का गुणानुवाद किया गया है, यथाश्री खरतरगच्छ कमलविकासण दिनमणी रे,
जुगप्रधान पद धार, गुणनिधि रे श्री जिनचंद मुनीसरु रे । पातिसाह अकबर भूमिपति मानीये रे,
देखी जसु अनुभाव, अभिनवि रे सकल जीव आनंदकरु रे।' देवराजवच्छराज चौपई अथवा प्रबन्ध (सं० १६७२ खामभरनगर) का रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है
श्री खामभर नगरइ भलइ, श्री संतिजिन सुप्रासादि,
नयन वारिधि रस शशि, शुभ वरसइ हो बड़ी परमाद । इसमें भी वही गुरुपरंपरा गिनाई गई है । यह रचना भी शील का महत्व उजागर करती है।
सागर श्रेष्ठी कथा (२३२ कड़ी सं० १६७५ बीकानेर) सुपात्रदान विषय पर आधारित कथा है, यथा--
इम फल आणी आगमइ अ, दान दीयउ दातार,
दीयउ दुरमति दलइ अ, सहु जाणइ संसार। रचनाकाल- समति जलधि रस ससि समयइ सायरनउ संबंध,
रसीक रलीयामणउ अ, सकृत सुकूल सुगंध । इनके अतिरिक्त कलावती रास (गाथा १२२ सं० १६६७ रसाचल), और व्यसनसत्तरी (गाथा ७१ सं० १६६८ नागौर) का विवरण जैन गुर्जर कविओ में संक्षिप्त रूप से दिया गया है किन्तु इनके उद्धरण नहीं १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ३९६ (द्वितीय संस्करण)
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