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________________ '५२४ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास बड़ा है। इसके सम्बन्ध में श्री अगर चन्द नाहटा का एक लेख जैन'सिद्धान्त भास्कर में प्रकाशित है।' इस रास से आचार्य जिनसिंहसूरि और सम्राट अकबर की मुलाकात पर भी प्रकाश पड़ता है। शत्र जय माहात्म्य रास (६ खंड, सं० १६८४ आसणीकोट) के अन्त में रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है संवत सोल चउरासी वरसइ, श्री नेमिनाथ प्रभावई, आसणिकोट श्रावक बहुसुषिया, धरमइ चित्त लगावई रे। इसमें खरतगच्छ के युग प्रधान जिनचंद्रसरि से लेकर जिनसिंह 'जिनराज, जिनसागर, रतनसार, रतनहर्ष और उनके शिष्य तथा कवि के गुरु हेमनन्दन तक का अभिवादन किया गया है, यथा रतनहरष वाचक हेमनन्दन सीस भगति चित ठावइ, सहजकीरति वाचक विमलाचल गिरिवर अम मल्हावइ रे । शीलरास (८१ कड़ी सं० १६८६ श्रावण शुक्ल १५ कृष्णकोट) में शील का माहात्म्य बताया गया है। 'प्रीति छत्तीसी' षद्रव्यविचारादि 'प्रकरण संग्रह में प्रकाशित है। इसका रचनाकाल देखिये संवत सोल वरस अण्यासी, जिहाँ हुउ सबल सुकालजी, विजयदसमि सांगानेर पुरवरि, अह विचार रसालजी। प्रीति छत्तीसी ओ वयरागी, भविक भणि हितकार जी, वाचक सहज कीरति कहइ भावइ, श्रीसंघ जयजयकारजी। हरिश्चंद चौपइ (१७ ढाल सं० १६९७) का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है प्रणमु फलवधि पास जिन, प्रणमुजिणवरि वाणि, प्रणमं सद्गुरु आपणो, निरमल भाव प्रमाण । हरिश्चन्द्र चौपई का रचनाकाल देखिये संवत सोल सत्ताणुयइ, परिधल जिहां हुआ धान राजा, सगलइ देस विदेस कइ, उच्छव रंग प्रधान राजा। १ अगरच द नाहटा-परंपरा पृ० ८० २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १७४-१७६ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० ४०२ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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