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महोपाध्याय सहजकीर्ति
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आपके संस्कृत ग्रन्थों की सूची भी काफी बड़ी है । इन्होंने 'अष्टलक्षी' का प्रारम्भ सं० १६४९ में विया और उसे लाहौर में सं १६७६ में पूर्ण किया । सं० १६४१ में भावशतक की रचना से लेकर सं० १७०० में लिखित द्रुपदी संबंध तक के ५९ वर्षों की लम्बी अवधि इन्होंने साहित्य सेवा में लगाई थी । सं० १७०३ में अहमदाबाद में इन्होंने शरीर त्याग किया ।
इनके नाम से जो सैकड़ों सैकड़ों छोटी-बड़ी रचनायें गिनाई जाती हैं उनमें कुछ अन्य कवियों की रचनाओं का हेर फेर भी हो गया लगता है किन्तु अभी तक इस दिशा में वैज्ञानिक दृष्टि से कार्य नहीं हो सका है। पहले गुण रत्नाकर छंद, सुसढ़ रास को इनकी कृति माना जाता था किन्तु अब पहली रचना सहजसुन्दर और दूसरी समयनिधान की मानी जाती है । इसी प्रकार बारव्रत रास, नलदमयन्ती संबोध आदि भी शंकास्पद रचनायें हैं । जो हो यदि दो चार रचनायें निकाल भी दी जाँय तो समय सुन्दर के रचना समुद्र में उसी प्रकार कोई कमी न आयेगी जैसे- समुद्र से चार चुल्लू पानी ऊलीचने पर कोई कमी नहीं आती। आप सत्रहवीं शताब्दी के महान विद्वान् टीकाकार, संग्रहकार, शब्द शास्त्री, छंदशास्त्री और श्रेष्ठसाहित्यकार थे । इनके सम्पूर्ण रचना संसार का विवरण देने के लिए एक सम्पूर्ण ग्रन्थ भी छोटा होगा । अतः लोभ का संवरण करते हुए विवरण यहीं समाप्त किया जा रहा है। अधिक जानकारी हेतु पाठक मुनि चन्द्रप्रभसागर कृत 'समय सुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' नामक पुस्तक देखें ।
महोपाध्याय सहजकीर्ति - खरतरगच्छ की क्षेम कीर्ति शाखा के वाचक हेमनन्दन आपके गुरु थे । आप संस्कृत और मरुगुर्जर भाषाओं के ज्ञाता तथा लेखक थे । आपने संस्कृत में कई टीकाग्रंथ और कोषादि लिखे हैं । मरुगुर्जर में आपके सुदर्शन चौपई या रास सं० १६६१ बगड़ी पुर, कलावती चौपई १६६७, देवराज - वच्छराज चौपई सं० १६७२ खींवसर, सागरसेठ चौपई सं० १६७५ बीकानेर, रायपसेणी चौपई सं० १६७६ श्री करण, नरदेव चौपई सं० १६८२ पाली, शान्तिविवाहली सं० १६७८ बालसीसर, शत्रुञ्जय माहात्म्य रास १६८४ असनीकोट, हरिश्चन्द्ररास सं० १६९७ और शीलरास सं० १६८६कृष्णाकोट नामक ग्रंथ प्राप्त हैं । इनमें शत्रुंजय माहात्म्यरास सबसे
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