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________________ ५२२ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास वंशस्थ, गाथा, चौपाई, दोहा, सोरठा, सवैया, गीत आदि नाना प्रकार के मात्रिक एवं वर्णिक छंदों का कुशलता पूर्वक प्रयोग किया है। शास्त्रीय राग रागिनियों के अलावा इन्होंने देशी ढालों का सुन्दर प्रयोग किया है। स्थानीय विशेषताओं को आत्मसात् करने के कारण ही इन रागों को देशी कहा जाता है। मारवाड़, गुजरात, सिन्ध आदि प्रान्तों के लगभग ३०० देसियों का इन्होंने प्रयोग किया है। समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि में श्री नाहटा ने इनकी ५६३ रचनाओं का संग्रह किया है । ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में जिनचंदसूरि गीतानि के अन्तर्गत समयसुन्दर के गीत क्रम सं० १६, १७, १८, १९, २० और २१वें क्रम पर संकलित हैं। ये भिन्न-भिन्न राग रागनियों में आबद्ध हैं । १६वें गीत की चार पंक्तियां प्रस्तुत हैं धन्यासरी रागमाला रची उदार, छः राग छत्रीसे भाषा भेद विचार, सोलसई बावन विजयदसमीदिने शुभ गुरुवार, थंभणपास पसायइत्रंबावती मझार । जुगप्रधान जिनचन्द्रसूरींदसारा चिरजियउ, जिनसिंघसूरि सपरिवार, सकल चन्द मुणीसर सीस उन्नतिकार, समयसुन्दर सदा सूख अपार ।' २०वीं रचना 'चंद्राउला' कुछ बड़ी है। जिनसिंहसूरि गीतानि शीर्षक के अन्तर्गत ए० जै, रास संग्रह में भी समयसुन्दरकृत गीत क्रमांक, ३. ४, ५. ६, ७, ८ और ९ पर संकलित हैं जिनमें जिनसिंह सूरि की स्तुति है। इनमें हिडोलणा, गहूँली, वधावा, पद, चौमासा आदि काव्य रूपों का प्रयोग हुआ है। ९ वें गीत गहंली की चार पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं - आचारिज तुम मन मोहियो, तुमे जगि मोहनवेलि, सुन्दर रूप सुहामणो, वचन सुधारस केलि। रायराणा सब मोहिया मोहो अकबर साह रे, नरनारी रामन मोहिया महिमा महि यल मांहरे १. ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह-सं० अगरचन्द नाहटा, जि नचन्द्रसूरिगीतानि २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० १३१ और जैन गुर्जर कविओ भाग १ पृ० ३३१-९१, भाग ३ पृ० ८४६-७५, १५६४-१५ तथा १६०७ (प्रथम संस्करण) और भाग २ पृ० ३०६ से ३८१ (द्वितीय संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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