________________
समय सुन्दर महोपाध्याय
५२१
देखिये । राजा शतानीक मृगावती की खोज में मलयाचल प्रदेश के तापस आश्रम में पहुँचता है तो प्रकृति भी मानों उसका भव्य स्वागत करती है, यथा
पवन कंपाव्या ब्रछनम्या, ते तुझ करइ प्रणाम, अभ्यागत आव्या भणी, विजय घणउ इण ठाम कोयल करइ टहुकंड़ा, मोर करइ किगार, स्वागत बूझइ तुझनइ, तरुवर पणि सुविचार | "
इसी प्रकार नगर वर्णन, वैभव वर्णन, नखशिख वर्णन, नर्तकी वर्णन, स्वयम्बर विवाह वर्णन, युद्ध वर्णन, तपस्वी एवं समवसरण आदि के प्रभावशाली वर्णन किए हैं । नृत्य और नर्तकी का एक चित्रात्मक वर्णन देखिये -
राजा हुकम कीयो नाटक कइ नटई बाल कुमारि, चन्द्रवदन मृगलोयणि कामिणी पगि झांझर झणकार । गीत गान मधुर ध्वनि गावति, संगीत के अनुहारि, हावभाव हस्तक देखावति उरमोतिण कउ हार । सीस फूल काने दो कुण्डल तिलक कियो अतिसार, नकवेसर नाचति नक ऊपर, हुं सब मई सिरदार |
महोपाध्याय समयसुन्दर जी काव्य में रस की उपस्थिति आवश्यक मानते थे इसलिए उन्होंने सरस काव्य लिखा है । वैसे तो शृङ्गार के संयोग और विप्रलम्भ के अलावा प्रसंगानुसार, वीर, रौद्र, हास्य आदि का भी वर्णन उन्होंने किया है किन्तु सबका समापन अन्त में शान्त रस में किया गया है । विप्रलम्भ की निम्न पंक्तियाँ देखिये
प्रीतडिया न कीजइ हो नारि परदेसियां रे, खिण खिण दाझइ देह,
बीछड़िया वाल्हेसर मिलवो दोहिलउ रे, साल अधिक सनेह |
साधु साध्वी और सतियों से सम्बन्धित रचनाओं के अलावा उपदेश परक नाना रचनाओं में यदि रस है तो वह शान्त रस ही है ।
इन्होंने छन्दों के अन्तर्गत मधुमती, चम्पकमाला, दोधक, भद्रिका, हंसमाला, चूड़ामणि, स्रग्विपि, त्रोटक, मालिनी, शार्दूलविक्रीडित,
१. मुनि चन्द्रमसागर --- समयसुन्दर व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० ३१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org