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________________ समयसुन्दरमहोपाध्याय बहुत सी रचनायें आपने लिखी हैं, इनके रचना समुद्र का विस्तार अपार है, अत: नमूने के तौर पर थोड़ी सी प्रकीर्णक रचनाओं का परिचय-उद्धरण देकर सन्तोष किया जा रहा है । आपकी 'चौबीसी' जैन स्तुति परक साहित्य की अमूल्य थाती है। यह अहमदाबाद में सं० १६५८ में लिखी गई। सं० १६९७ में हाथीसाह के आग्रह पर आपने २० विहरमान जिनस्तवन या बीसी स्तवन लिखा है। अनागत चौबीसी स्तवन, श्री आदि जिनस्तवन आदि अनेक स्तवन तीर्थंकरों एवं तीर्थों से सम्बन्धित हैं। शालिभद्रगीतम. श्री धन्नाअनगार गीतम्, श्री बाहुबलि गौतम्, जम्बूस्वामी गीतम् और अरहन्नक, इलापुत्र, अनाथी मुनि आदि पर अनेक गीत लिखे हैं। इसी प्रकार सतियों से सम्बन्धित ऋषिदत्ता, नर्मदासुन्दरी, चेलनासती, दवदन्ती सती, अंजना सुन्दरी, मरुदेवी, राजुल आदि पर आधारित दर्जनों गीत भी आपने लिखे हैं। गुरुगीतम् के अन्तर्गत आपने जिनसिंह सूरि, जिनचन्द सूरि, जिनकुशल सूरि आदि पर कई गीत लिखे हैं। उपदेशपरक रचनाओं में जीवप्रतिबोध गीतम्, जीवकाया गीतम्, बारह भावना गीतम्, बारहव्रत कुलकम्, अध्यात्म संज्झाय, हितशिक्षागीतम् आदि इस प्रकार पत्राों गीत आपके पाये जाते हैं। आपने नेमि-राजुल और कोशाशूलिभद्र से सम्बन्धित कई सरस, मार्मिक विरह गीत भी लिखे हैं। इनमें प्रकृति की विविधता, शोभा, नारी अंगों की सुषमा और विरह भावना की मार्मिकता के वर्णन में कवि हृदय की मनोरम झाँकी दिखाई पड़ती है। भाषा-आपने यह विशाल साहित्य संस्कृत, प्राकृत, मरुगुर्जर (प्राचीन हिन्दी ) और सिन्धी भाषा में लिखा है। समयसुन्दर की भाषा शौरसेनी प्राकृत > अपभ्रंश से विकसित वह भाषा है जो उस समय जनसाधारण में व्यवहृत हो रही थी। इनकी भाषा को गुजराती विद्वान् मो० द. देसाई, रमणलाल शाह आदि गुजराती तथा अगरचन्द नाहटा, डा० सत्यनारायण स्वामी आदि राजस्थानी विद्वान् राजस्थानी बताते हैं । वस्तुतः वह मरुगुर्जर या पुरानी हिन्दी ही है । समयसुन्दर का जन्मस्थान सांचौर राजस्थान और गुजरात की संधिसीमा पर है, जहाँ दोनों भाषायें बोली जाती हैं। इनकी पद्य भाषा में तत्सम संस्कृत शब्दों का बाहल्य होने के कारण वह हिन्दी के अधिक निकट दिखाई देती है। सन्तों की भाषा में कई प्रान्तों के शब्द अनायास मिलजुल जाते हैं। समयसुन्दर की भाषा में भी पंजाबी, सिन्धी Pain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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