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________________ ५१८ मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह समय सुन्दर रास पंचक में प्रकाशित है। इस पंचक में पुण्यसार चरित चौपई (सं० १६७३) भी प्रकाशित है। यह शान्तिनाथ चरित्र पर आधारित है। एक उद्धरण देखिये शान्तिनाथ जिन सोलमउ, तसु चरित चउसाल, ए मई तिहां थी ऊधर्यउ, सम्बन्ध विशाल । संवतसोल तिहुत्तरइ भर भादव मास; ए अधिकार पुरउ कर्यउ समयसुन्दर सुखवास । नलदमयंती सम्बोध या नलदमयन्ती रास (सं० १६७३) में रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है उवझाय इम कहइ समयसुन्दर, कीयऊ आग्रह नेतसी, चउपइ नलदमयन्ती केरी, चतुर माणस चित बसी । संवत सोल तिहुत्तरइ मास बसन्त आणंद, नगर मनोहर मेडतउ तिहां वासुपूज्य जिणंद ।' यह रचना ६ खंड, ३९ ढाल, ९३१ गाया की है। इसे श्री रमणलाल शाह ने सम्पादित-प्रकाशित किया है। इस कथानक पर रचित कवि प्रभानन्द कृत नलाख्यान नामक रचना इसके जोड़ की मानी जाती है। यह भी समयसुन्दर कृत महगुर्जर रचनाओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें प्रसिद्ध राजा नल और उनकी पत्नी दमयन्ती की कथा जैनमतानुसार वर्णित है। इसमें लिखा है 'ए अधिकार तिहां थी ऊर्यो चंचल कवियण चित्त हो' या 'कवियण केरी किहां कणि चातुरी, अधिकुं ओछू एथिहो' से लगता है कि यह रचना शायद समयसुन्दर उपनाम कवियण की हो या कवियण सभी कवियों के लिए सामान्यबोधक शब्द हो । गद्यरचनाओं में षडावश्यक बालावबोध सं० १६८३ में जैसलमेर में लिखी गई प्रसिद्ध रचना है। प्रकीर्णक रचनाओं में 'गुरु दूषित वचनम्' इनकी आत्मव्यथा की व्यञ्जना करने वाली रचना है। इनके शिष्यों ने वृद्धावस्था में इन्हें छोड़ दिया। कवि का भावुक हृदय व्यथित हो गया, वही आन्तरिक व्यथा, पीड़ा इस लघुकृति में मार्मिक ढंग से व्यजित हुई है। संघपति सोमजी वेलि, मनोरथ गीतम् आदि अन्य १. मुनिचन्द्रप्रभसागर-समयसुन्दर व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० १६४ और राजस्थान के जैन शास्त्रभंडार की ग्रन्थ सूची ५ भाग पृ० ५४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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