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समयसुन्दरमहोपाध्याय
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छत्तीसी साहित्य-इसके अन्तर्गत कर्मछत्तीसी, क्षमाछत्तीसी, संतोषछत्तीसी, पुण्यछत्तीसी, सत्यासिया दुष्कालवर्णन छत्तीसी, आलोयणा छत्तीसी और प्रस्ताव सवैया छत्तीसी आदि उल्लेखनीय रचनायें हैं। इनमें कुल ३६ पद या छंद होते हैं। कर्मछत्तीसी (सं० १६८८ मुल्तान) में कर्मविपाक का दृष्टान्त २७ प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन से दिया गया है। पुण्यछत्तीसी (सं० १६६९) में पुण्य कर्मों के उदय के फलस्वरूप प्रशस्त जीवन का उदाहरण पुण्यवान पुरुषों के जीवन से दिया गया है । क्षमाछत्तीसी (सं० १६८२) में २६ महापुरुषों के जीवनदृष्टान्तों द्वारा क्षमा नामक महान मानवगुण का गुणानुवाद किया गया है। संतोषछत्तीसी (सं० १६८४ लूणकरणसर) में २८ विशिष्ट पुरुषों के जीवनचरित्र से दृष्टान्त देकर श्रावकों को पारस्परिक विग्रह एवं अशान्ति को दूर करके सन्तोषपूर्वक जीवनयापन का सन्देश दिया गया है।
सत्यासिया दुष्कालवर्णन छत्तीसी- इनमें सर्वाधिक महत्वपर्ण रचना है। इसका महत्व न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से अपितु वर्णनात्मक दृष्टि से भी है। इसमें इतिहास और काव्य का उत्तम सम्मिश्रण हआ है। सं० १६८७ में गुजरात में जो भयंकर अकाल पड़ा था उसका यथार्थ, रोमांचक एवं मार्मिक वर्णन किया गया है। यह रचना सं० १६८७ में पाटण में लिखी गई होगी। यह संकेत जयतिहुयण वृत्ति और भक्तामरस्तोत्र की सुबोधिका वृत्ति से प्राप्त होता है। प्रस्ताव सवैयाछत्तीसी में देव, गुरु और धर्म का सम्यक् स्वरूप व्यञ्जित है। यह समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि में प्रकाशित है। आलोयणाछत्तीसी (सं० १६९८ अहमदपुर ) अपने कृत पापों की स्वीकृति, प्रकाशन और आलोचना को आलोयणा कहते हैं। उसी का महत्व इसमें दर्शाया गया है। इसका कई जगहों से प्रकाशन हो चुका है। इनके अतिरिक्त दयाछत्तीसी, शीलछत्तीसी, तीर्थमास छत्तीसी नामक कई छत्तीसी रचनायें आपने की हैं । यतिआराधना, साधुवंदना, दानशीलतपभाव संवाद, केशीप्रदेशी प्रबन्ध भी आपकी उल्लेखनीय लघु किन्तु प्रभावशाली रचनायें हैं। इनसे बड़ी रचनाओं में मृगावती चरित्र चौपई (सं० १६६८ सिन्ध) या मोहनवेल ।३ खण्ड ३८ ढाल, ७४४ कड़ी, मुलतान) है जो अगरचन्द नाहटा और रमणलाल शाह द्वारा प्रकाशित है। दूसरी बड़ी रचना सिंहलसुत प्रियमेलक तीर्थ चौपई प्रबन्ध ११ ढाल २३० कड़ी सं० १६७२ मेड़ता में लिखी गई है।
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