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मरु-गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
पृथिवी मांहि प्रसिद्ध सुणियइ दान कथा सदा,
प्रियमेलक अप्रसिद्ध सरस घणु सम्बन्ध छ ।' गौतम पृच्छा चौपई (५ ढाल, ७४ कड़ी, सं० १६९५. चांदेउ) यह प्रश्नोत्तर शैली में लिखी गई है। इसमें गौतम के ४८ प्रश्नों का महावीर ने उत्तर दिया है। यह किसी प्राचीन रचना का भावानुवाद है। गौतम पृच्छा की निम्नलिखित चौपई का प्राकृत की मूलगाथा से मिलान करने पर यह कथन प्रमाणित हो जायेगा, पहले मूल गाथा देखिये--
महुद्याय अग्गिदाहं अंकवा जो करेइ पाणीयां ।
बालाराम विणासी कुट्टी सो जायइ पुरिसो। चौपाई मधु पाडइ वनि आगि द्यइ त्रोडइ वनस्पति बाल,
डांभइ आंकइ जे जीवनइ, कोढ़ी हुवइ तत्काल । यह रचना जसवंत श्रावक के आग्रह पर की गई थी।
धनदत्त चौपई - यह समयसुन्दर रास पंचक में प्रकाशित है। यह सं० १६९६, अहमदाबाद में लिखी गई। इसमें ९ ढाल और १६१ गाथा हैं। इसे व्यवहार शुद्धि चौपई भी कहा जाता है। इसमें धन दत्त की कथा के माध्यम से श्रावकों के आचार व्यवहार की शुद्धि का विधि विधान बताया गया है। पुंजाऋषि रास (सं० १६९८ श्रावण शुक्ल ५) में असाधारण तपस्या का महत्व व्यक्त किया गया है। पूजाऋषि ने २८ वर्ष तक उग्र तप किया था। कवि ने कहा है
आज तो तपसी एहवो, पुजाऋषि सरीखो न दीखई रे,
तेहने वंदता विहरावंता, हरखे कवि हियडो हीसइ रे ।' पुजाऋषि पार्श्वचन्द्रगच्छीय विमलचन्द्र सूरि के शिष्य थे ।
द्रौपदी चौपई—यह वृद्धावस्था में लिखित प्रौढ़ रचना है। यह सं० १७०० में अहमदाबाद में लिखी गई । इसमें ३४ ढाल ६०६ कड़ियाँ
और ३ खंड हैं। इसके लेखन में कवि के दो शिष्यों-हर्षनन्दन एवं हर्षकुशल ने सहायता की थी। यह ज्ञाताधर्म कथांग के द्रौपदी नामक अध्ययन पर आधारित है। इसमें १००१ गाथा या श्लोक हैं। इसके द्वारा कर्मविपाक का सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है । १. राजस्थान के जैन शास्त्र भंडार की ग्रन्थसूची ५वाँ भाग पृ० ४५०
सं० डॉ० कस्तूरचन्द कासलीवाल २. मुनि चन्द्रप्रभसागर-समयसुन्दर व्यक्तित्व एवं कृतित्व पृ० १९२ Jain Education International
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