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समयसुन्दरमहोपाध्याय
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महत्व की रचना है । श्री मो० द० देसाई ने इसे गुर्जर कवि-शिरोमणि प्रेमानन्द की रचना से भी अनेक बातों में बढ़कर बताया है। यह रचना शार्दूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीटयूट, बीकानेर द्वारा प्रकाशित है।
वल्कलचीरी चौपई अथवा रास सं० १६८१ में मुलतान निवासी साह कर्मचंद्र के आग्रह पर जैसलमेर में लिखी गई। यह कथा बौद्ध जातक एवं महाभारत में ऋषि शृङ्ग के नाम से मिलती है। यह लघुकृति काव्यतत्त्वों से युक्त है और समयसुन्दर रास पंचक ग्रंथ में सङ्कलित है।
शत्रुञ्जयरास-यह इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। इसमें शत्र जय (पालिताणा) की महिमा का वर्णन किया गया है। यह धनेश्वरसूरि के शत्रुञ्जय माहात्म्य पर आधारित है । यह रास १६८२, नागौर में लिखा गया है, यथा
संवत सोलसइ व्यासीयइ ए श्रावण वदि सुखकार,
रास भण्यउ सेज तणउ, नगर नागोर मझार । वस्तुपाल तेजपाल रास-ऐतिहासिक महत्व की कृति है। इसमें प्रसिद्ध धर्मनिष्ठ, सूरवीर जैन मंत्री बन्धुओं का चरित्र चित्रित है। इसकी रचना सं० १६८२ तिमिरीपुर में हुई । हीरानन्द सूरि मेरुविजय आदि कई अन्य कवियों ने भी वस्तुपाल तेजपाल पर रास रचना की है। यह समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि और जैन युग पु० १ पृ० १७ १९ पर प्रकाशित है। ___ थावच्चासुत ऋषि चौपई और क्षुल्लक ऋषिरास में क्रमशः थावच्चा और क्षुल्लक ऋषि की कथा दी गई है। प्रथम रचना कार्तिक कृष्ण ३, सं० १६९१ खंभात में और द्वितीय सं० १६९४ जालौर में रची गई।
थावच्चासुत ऋषि चौपई में दो खंड, ३० ढाल, ४३७ कड़ी है।
चम्पक श्रेष्ठि चौपई (२ खंड २१ ढाल ५०७ कड़ी, सं० १६९५ जालौर) में चंपक श्रेष्ठि की कथा है। यह शार्दूल रिसर्च इन्स्टीट्यूट बीकानेर से प्रकाशित है। प्रियमेलक चौपई संम्वत् १६७२ का मङ्गलाचरण देखिये
प्रणमू सद्गुरुपांय समरू सरसती सांमणी, दान धरम दीपाय कहिसिकथा कौतक मणी।
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