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समयसुन्दर महोपाध्याय
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हवइ श्री गुरु संघ आगलि कवियण करइ अरदास, ते सुणज्यो तम्हें सज्जन उत्तम मति सविलास । तां चिर जयउ चतुरविध श्रीसंघ सु अह रास, इम जंपइ 'कवियण' आणी बुद्धि प्रकाश ।'
या
समयसुन्दर महोपाध्याय - विक्रम की १७वीं शताब्दी में दो महान धर्मप्रभावक आचार्य हुए। एक खरतरगच्छ के युगप्रधान आचार्य जिनचन्द्रसरि और दूसरे तपागच्छ के जगद्गुरु हीरविजयसूरि। ये दोनों आचार्य सम्राट अकबर से मिले थे और अपने व्यक्तित्व से उसे प्रभावित करके धर्म की प्रभावना में बड़ा योगदान दिया था। निःसन्देह वे लोग महान सन्त थे किन्तु जहाँ तक साहित्य लेखन का प्रश्न है इस शताब्दी में इतनी बड़ी संख्या में इतने सुन्दर ग्रंथों की रचना करने वाला विद्वान् संभवत: समयसून्दर महोपाध्याय से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हुआ है। आपके साहित्य का अध्ययन करने वालों में मो० द० देसाई, अगरचन्द नाहटा, भंवरचन्द नाहटा, महोपाध्याय विनयसागर और सत्यनारायण स्वामी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं । मुनि चन्द्रसागर ने समयसुन्दर महोपाध्याय पर शोधप्रबन्ध लिखा है । * इन सब लोगों ने महोपाध्याय के कृतित्व को मुक्त कंठ से प्रशंसा की है।
समयसुन्दर के काव्य प्रतिभा की प्रशंसा परवर्ती अनेक कवियोंऋषभदास, वादी हर्षनन्दन, कवि राजसोम, कवि देवीदास, पं० विनयचन्द एवं उपाध्याय लब्धिमुनि आदि ने भी की है। राजसोम ने नलदमयन्ती रास में लिखा है
साधु बड़ो ए महन्त अकबर शाह हो वखाणीओ,
समयसुन्दर भाग्यवंत पातिसाह तूठेहो थापलि इम कह्यो। श्री नाहटा द्वारा सम्पादित समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि की भूमिका में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी उनकी रचनाओं पर १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२४-२६ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३
पृ० ८४४-४६ (प्रथम संस्करण) २. मुनि चन्द्रप्रभ सागर-महोपाध्याय समयसुन्दर व्यक्तित्व एवं कृतित्व
प्रकाशक-केशरिया कम्पनी, कलकत्ता
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