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________________ मरु गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास १६वीं शताब्दी (विक्रम) के अन्तर्गत दिया जा चुका है । प्रस्तुत कवियण का नाम समयसुन्दर था जो प्रसिद्ध समयसुन्दर उपाध्याय से भिन्न थे। समयसंदर उपाध्याय और प्रस्तुत समयसन्दर उपनाम कवियण की कई रचनाओं में हेरफेर भी हो गया है जैसे स्थलिभद्ररास को कहीं उपाध्याय के नाम और उपाध्याय की चौबीसी को कहीं कवियण के नाम दिखाया गया है। किन्तु स्थूलिभद्र रास को अधिकतर विद्वान् समयसुन्दर (उपनाम कवियण) की रचना मानते हैं, इसलिए उसका परिचय यहाँ दिया जा रहा है। यह ४११ कड़ी की रचना है, जो सं० १६२२ हेमंत, ५ (स्थूलिभद्र दीक्षामास) बुधवार, को लिखी गई थी। स्थलिभद्र कोशा की प्रेमकथा जैन साहित्य में बड़ी लोकप्रिय एवं सरस है तथा राजुल एवं नेमि की कथा के बाद सर्वाधिक लोकप्रिय भी है। इस कथा को आधार मानकर अनेक कवियों ने कई अच्छी रचनायें प्रस्तुत की हैं। प्रस्तुत रचना का प्रारम्भ इन पंक्तियों से हुआ है सिरि सरसती सामिणि केरा प्रणम्पाय, वरमति बुद्धि आपो मुझनइ करी सुपसाय । विद्यादायक निजगुरु पद पंकज प्रणमेवि, सिरि थूलिभद्र रिषि गुणगायसु भक्तिधरेवि । जिणि मुणिवरि कोशा सु घरि कीधो सुखवास, तसु साथई रमीऊ बारवरस घरवास । जिणि कोशा छाड़ी पालिऊ अखंडित शील, गुरु पदवी भोगवी नई पाम्या स्वर्गसुख लील ।' इसमें कवि ने अपना नाम समयसुन्दर और कवियण दोनों लिखा है, यथा-- भविक नर नइ प्रतबोधदायक मिथ्यात्मन्तमहर दिणयरो, ते थूलिभद्र सयल संघनइ समयसुन्दर मंगलकरो। इसमें समयसुन्दर नाम दिया गया है। आगे की पंक्तियों में कवि ने अपना नाम कवियण दिया है, यथा - १. जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२४-१२६ (द्वितीय संस्करण) और भाग ३ पृ० ८४४-४६ (प्रथम संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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