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समयसुन्दर
५०९.
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह में 'श्री जिनचंद्रसूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत ७वीं रचना समयप्रमोद कृत एक प्रवाहमय गीत रचना है। इसकी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं -
इम विमल चित्तइ भणइ भत्तइ, समयप्रमोद समुल्लसी;
युगप्रवर जिनचंदसूरि वंदी, जाम अम्बर रवि शशी ।' चउपर्वी चौपइ (५२९ गाथा) सं० १६७३ आसु सुदी २ गुरुवार, झूठागाँव में लिखी गई। आपने गद्य में साधरमी या साहमी कुलक पर टब्बा सं० १६६१ फाल्गुन कृष्ण ७ वी रमपुर में लिखा। मूल कृति के लेखक अभयदेवसरि थे। इस गद्य रचना का उद्धरण उपलब्ध. नहीं हो सका।
समयराज (उपाध्याय)-आप जिनचंद्रसूरि के शिष्य थे। धर्ममंजरो चौपइ सं० १६६३ बीकानेर, श्रावक गुण चतुष्पदिका (४८ गाथा), अष्टोत्तरसतपार्श्वस्तवन (गाथा १६) सं० १६३३, इच्छा परिणाम टिप्पण (गाथा ३/६) सं० १६६० आपकी प्राप्त पद्य पुस्तकें हैं। आपने गद्य में कल्पसूत्र बालावबोध, चतुर्दश स्वप्न और साधुसमाचारी आदि की रचना की है। इनके शिष्य अभयसुन्दर और प्रशिष्य राजहंस भी अच्छे लेखक थे। धर्ममन्जरी चतुष्पदिका (२७८ कड़ी) सं० १६६३ महा शुक्ल १० वीकानेर की रचना है। इसकी अन्तिम पंक्तियाँ इस प्रकार हैं
भुजरस विजा देवी वच्छरइ, मधु सुदि दशमी पुष्पारकवरु इम वरइ विक्रमनयर मंडण, रिषभदेव जिणेसरु । जुगपवर श्री जिणचंदसूरी सुसीस पयंपओ, श्री समयराज उवझाय अविचल सुकब सोहग संपर्छ ।
समयसुन्दर (कवियण-कवियण नामक एक कवि की 'चौबीसी' पांच पांडव संज्झाय, तेतलीपुत्र रास आदि रचनाओं का परिचय १. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह पृ० ८६ २ अगरचन्द नाहरा - परंपरा, पृ० ८२ ३. जैन गुर्जर कविओ भाग ३ पृ० १७ (द्वितीय संस्करण) और भाग १ पृ०
३९६-९७ तथा भाग ३ पृ० ८८४ (प्रथम संस्करण)
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