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मरु - गुर्जर जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
प्रथम रचना सं० १६१० में बडोदरा में लिखी गई । इसमें कुल १२ कड़ियाँ हैं । इसकी अन्तिम पंक्ति इस प्रकार है --
" इम जंपै रे अजितदेव सूरि किसुणु ।” इति सिलगीतं संपूर्ण ( इण्डिया अफिस लाइब्रेरी नं ० गु० १९ ) चंदनबालाबेल की एक प्रति सं० १७८० की लिखित उपलब्ध है जो साध्वी केशाजी के पठनार्थ लिखी गई थी ।
अनन्तकोति - आप दिगम्बर सम्प्रदायान्तर्गत मूलसंघ के विद्वान् थे। आपने सं० १६६२ कार्तिक शुक्ल १४ को सांगानेर में अपनी रचना ( भविष्यदत्त चौपाई ) पूर्ण की। इसकी प्रति बीकानेर के मंगलचंदमाल संग्रह में ३६वीं क्रमसंख्या पर सुरक्षित है। इसकी भाषा शैली का नमूना जिज्ञासु उक्त प्रति से देख सकते हैं । हमें प्रति अनुपलब्ध है अतः विशेष कुछ कहना सम्भव नहीं है ' ।
अनन्तहंस - आप खरतरगच्छ के प्रसिद्ध मुनि भावहर्ष उपाध्याय के शिष्य थे । भाबहर्ष ने सं० १६२१ में खरतरगच्छ की भावहर्षी शाखा का प्रवर्तन किया था । आप की पुण्य स्मृति में अनन्तहंस ने 'भावहर्ष सूरि चौपाई' की रचना की । रचना का निश्चित समय ज्ञात नहीं है किन्तु इतना निश्चित है कि आप १७वीं शताब्दी के मध्यभाग में विद्यमान थे । आपकी अन्य दो रचनायें - अष्टोत्तरशतपार्श्वस्तवन और शान्तिस्तवन भी प्राप्त हैं । ये दोनों क्रमशः तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ और शान्तिनाथ की स्तुति में लिखी गई हैं । इस प्रकार इनकी तीनों प्राप्त रचनायें गुरुभक्ति एवं भगवन्त भक्ति पर आधारित हैं । इन रचनाओं में भक्तिकालीन हिन्दी काव्य में पाई जाने वाली गुरुभक्ति एवं भगवद्भक्ति की झलक देखी जा सकती है ।
भावहर्षी शाखा की प्रधान गादी बालोतरा में थी अतः यह अनुमान होता है कि आप राजस्थानी लेखक थे और आपकी भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक होगा ।
१. जैन गुर्जर कविओ (प्रथम संस्करण ) भाग ३ पृ० ७९० और भाग ३ ( नवीन संस्करण) पृ० ८०
२.
श्री अगरचन्द नाहटा — राजस्थानी साहित्य का मध्यकाल - परम्परा - पृ० ८९
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