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________________ अजित ब्रह्म - अजितदेवसूरि त्मिक उपदेशप्रधान पद्य रचना है। इसकी भाषा हिन्दी है। इसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैं ए बारह बिहि भावणइ जो भावइ दृढ़ चित्तु रे हंसा। श्री मूलसंघ गछि देसीउ ए बोलइ ब्रह्म अजित रे हंसा ।३६। . रास हंसतिलक एह जो भावइ दृढ़ चित्तं रे हंसा। श्री विद्यानन्दि उपदेसिउ बोलि ब्रह्म अजित रे हंसा ।३७। हंसा तू करि संयम, जम न पडिया संसार रे हंसा।' आप एक संत कवि थे। हंसा अर्थात् जीव को सम्बोधित करते हुए कवि ने उसे संयम-नियम पालन का उपदेश दिया है। हिन्दी के साथ ही आप संस्कृत के भी ज्ञाता थे। ___ हनुमच्चरित की एक प्राचीन प्रति आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर में संग्रहीत है। आपकी रचनाओं का संक्षिप्त उल्लेख डॉ. हरीश शुक्ल ने अपनी पुस्तक 'गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन' में . किया है। अजितदेवसूरि-आप श्वेताम्बर परम्परा के चन्द्रगच्छ, जो बाद में पल्लीवालगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुआ, के भट्टारक महेश्वरसूरि के पट्टधर थे। आप संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी के उत्तम जानकार थे। आपने संस्कृत में पिंडविशुद्धि और आचारांग पर दीपिका लिखी। उत्तराध्ययन स्तोत्र पर बालावबोध नामक विद्वत्तापूर्ण टीका भी लिखी है।३ मरुगुर्जर या हिन्दी में आप की दो कृतियाँ उपलब्ध हैं-(१) समकित शीलसंवाद रास, (२) चंदनबालाबेलि। १. राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व-डॉ० कस्तूरचंद कासली वाल पृ० १९५-९६ (प्रकाशक-श्री दि० जै० अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी, जयपुर) २. गुर्जर जैन कवियों की हिन्दी साहित्य को देन पृ० ११९-१२० ३. जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास पृ० ५८५ प्रकाशक जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स आफिस, मुम्बई सन् १९३३ ४. श्री मोहनलाल दलीलचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो (प्रथम संस्करण), भाग ३, खण्ड १ पृ० ६७५; (नवीन संस्करण) भाग २, पृ० ४७ और भाग ३ पृ० ३६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002091
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1993
Total Pages704
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size10 MB
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